Saturday, December 15, 2012

भूलता जा रहा हूं सब


भूलता जा रहा हूं सब
अपनें अतित के पन्‍ने
दिनों पहले सहेज कर
रख दिये थे कहीं.....मैंने...
अचानक से मिल गये कुछ....
हर इक सफे पर
हर एक लफ्ज
अब भी ताजा मालूम देता है.......
खेत की सरहद पर लगी
इमली की तरह
हलक से उतर कर
दिमाग को सुकुन देती.....
बारीश के मौसम में
तुम्‍हारे आंचल की छत जैसा
अरसा हो गया....
बारीश में भिगे...
ठिठुरते हाथों में
चाय की प्‍याली थामें....
और भी बहोत से पन्‍ने थे
मगर.....
भूलता जा रहा हूं सब.....
    भूलता जा रहा हूं सब.....
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

क्‍या ये जरूरी है.....?


क्‍या ये जरूरी है ?
मेरे ही बीज से बने वो
मेरे ही रूप रंग में ढले वो
क्‍या ये जरूरी है.....?
फिर हमारे रक्‍त संबंधों का क्‍या
सब मिथ्‍या है
कोई मोल नहीं इसका
फिर भी साथ रहना....
क्‍या ये जरूरी है.....?
हमारा कुनबा, हमारा खानदान
सिर्फ खोखले शब्‍द है
या किसी स्‍वार्थ की डोर से बंधे
जिने को मजबूर
क्‍या ये जरूरी है......?
मेरे बीज से ना होना
सब संबंधो का मिथ्‍या होना है
अलावा इसके
क्‍या अलग है हम ?
संवेदना, प्रेम, दुःख
अश्रुओं का खारापन
क्‍या अलग है ?
इन सबको नज़र अंदाज करना
क्‍या ये जरूरी है......?
 क्‍या ये जरूरी है......?
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

Wednesday, December 12, 2012

जेव्‍हा शब्‍द सुचत नाहीं..

जेव्‍हा शब्‍द सुचत नाहीं.............

आवरता येत नाही भावनांचा वेग
नियतीचा तोल
डोळ्रयांतील अश्रुंचा वेग
पावसाच्‍या सरी कोसळतात
पूर येतो पापण्‍यांच्‍या काठेला
सर्व काही धुकं, होत जातं
मन हे शब्‍दां वाचून मुकं होत जातं
जेव्‍हा शब्‍द सुचत नाहीं.............
डोळ्रयांतील पाण्‍याला
कोणीच झेलत नाही
बांध फुटतो,हुंदके येतात
मन तरी वळत नाहीं
कुणाला ही माझी व्‍यथा
कशीच कां कळत नाही
कुण्‍याच्‍याही मनांत
पश्‍चातापाचे अंकुर ही फुटत नाहीं
जेव्‍हा शब्‍द सुचत नाहीं.............
रोज रात्री तुझीच आठवण
तुझ्याच कुशी साठी
माझं..हरवलेलं बालपण
शोधत राहते..चंद्रा बरोबर
तो ही एकटाच असतो
काही सुध्‍दा बोलत नाहीं
जुणु त्‍याला ही माझ्या
भावना काही कळत नाहीं
किंवा...शब्‍दां वाचून
बोलावं काय
त्‍याला ही सुचत नाहीं
अशीच होते दशा
आपली, जेव्‍हा शब्‍द सुचत नाही
     जेव्‍हा शब्‍द सुच नाहीं.............
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़' 

जरी पराधीन आहे,जगती जन्‍म मानवाचा......


जरी पराधीन आहे,जगती जन्‍म मानवाचा......

घेई जन्‍म बाळ,त्‍यासी
न कळे धर्म कैचा
कळे ना जात कैची, न भाषा
जन्‍मला माय पोटी
ओळखी माय भाषा
जरी पराधीन आहे,जगती जन्‍म मानवाचा......
जाणतो हा सर्व मर्म
बंधनें ही मिथ्‍या सारी
तरीं, दंभ जपूनी आपले
करितो हा अहं भारी
स्‍वयं कां रंगविले तू...?
स्‍वप्‍न आपले राजकुमारी
तुटले नाते, उरली न कुणाची
कां, छळियले मज नाना प्रकारी....?
अहं सर्व, अहं ब्रम्‍ह
असा कसा हा गुण मानवाचा....?
जरी पराधीन आहे,जगती जन्‍म मानवाचा......
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Sunday, December 09, 2012

घर में जब आते हो,तो ठहर क्‍यों नहीं जाते



तेरा मेरे खयालों में ये,आना जाना किस लिये
ज़ख्‍मों को हरपल,हरा करते रहना किस लिये
घर में जब आते हो,तो ठहर क्‍यों नहीं जाते
अश्‍क बनकर फिर यूं निकल जाना किस लिये.......


रास्‍ते जब बदल गये,तो मिलना किस लिये
उम्‍मीदें टुट गयी,तो फिर जुडना किस लिये
कहकर तो गये थे,तुझसे कोई वास्‍ता न रहा
दिवानें की तरह मेरा नाम,पुकारना किस लिये.......


ये जश्‍न ये आराईश ये मिनाकारी किस लिये
ये संदल की महक,ये जिस्‍में रौनक किस लिये
मैयत में कभी शादी का, कलमा नहीं पढतें
फ़राज के नाम कि मेंहंदी फिर सजाना किस लिये........
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Sunday, December 02, 2012

मैं मौन क्‍यों हो जाता हूं ?

मैं मौन क्‍यों रह जाता हूं

इतने कष्‍ट, संताप तुम्‍हारे
सारे क्‍युं मै सहता हूं.....
ठुकराती हो तुम हर बार
मगर....
खामोश खडा रह जाता हूं
ऑखों में लाकर आंसु
जब....
मुझसे लिपट तुम जाती हो
उस एक पल में मैं
स्‍वयं कुबेर हो जाता हूं...
अब समझी ?
अक्‍सर,मैं मौन क्‍यों हो जाता हूं.....

नैनों से छुप नहीं पाता
मृदुल और अलौकिक नेह
गौण हो जाती है
अपनें बीच
नश्‍वर और मतवाली देह
घटा बनकर बरसती हो
जब तुम......
मैं मयुर बन जाता हूं
अब समझी ?
अक्‍सर मैं मौन क्‍यों हो जाता हूं.........

कभी रौद्र कभी संयम में
रहती अल्‍हड नदी सी तुम
कलरव का होता आभास
कभी...
कभी... झंकार पायल की
बहती रहती अविरत ..निश्‍चल
कभी..
कभी, तान सुनाती कोयल की
तुम्‍हारे मिलन की चाह में,मैं
सागर गहरा बन जाता हूं
अब समझी ?
अक्‍सर, मैं मौंन क्‍युं हो जाता हूं

प्रेम की परिभाषा हो तुम
भक्ति में डूबी गाथा
छल-कपट हर द्वेश सहती
मगर.....
टुट ना पाता, तेरा मेरा नाता
मीरा जब तुम बन जाती हो
मैं तब श्‍याम हो जाता हूं
अब समझी ?
अक्‍सर, मैं मौन क्‍यूं हो जाता हूं
          मैं मौन क्‍यूं हो जाता हूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़' 

Saturday, December 01, 2012

कितनी जल्‍दी सबकुछ खत्‍म हो गया

कितनी जल्‍दी, सबकुछ अचानक से
खत्‍म हो गया
मेरे हृदय का कृंदन
तुम्‍हारे 
गुंज में शहनाई की
लुप्‍त हो गया
तुम सुनती भी कैसे ?
इतनें कोलाहल में
मेरे स्‍वप्‍नों का
टुटकर बिखर जाना

कितनीं सादगी से
तुमनें
अपनें हाथों में मेहंदी
रचाली
ऑंखों से बहते मेरे
हृदय रक्‍त को
सहेज कर

व्‍यर्थ ही तो जायेंगे अब
मेरे अरमानों के ये
पंख सारे
ले लो इन्‍हे......
अपनें नये घौंसले में
सजा लेना...
एक नयी दुनिया अपनी
बसा लेना...

तीव्र है अभी ज्‍वाला
जलती हुई आशाओं की...
तप्‍त है भावनाऐं
स्‍वाहा होने को आतुर..

प्रत्‍येक स्‍वप्‍न,प्रत्‍येक क्षण
चुंबन - आलिंगन के वो
निरव क्षण...
भस्‍म होने को लालायित है
उठ रही है जबतक..
उंची ये लौ..
फेरे सात लगा लो तुम
फिर करके सदा को..
विस्‍मृत मुझे......
सेज-सुहाग की सजा लो तुम
     सेज-सुहाग की सजा लो तुम
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

मर कर तो लाश भी,दो गज़ में सिमट जायेगी

नां ज़र जायेगा नां जमीं,ख़ाक भी छुट जायेगी
डोर हमारे सांसों की,जानें कब टुट जायेगी
किस के लिये भरनां है ये,आराईशों की पेटियां
मर कर तो लाश भी,दो गज़ में सिमट जायेगी
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, November 21, 2012

हमारा एक होना जरूरी है

कसाब जैसी सोच को मसलना जरूरी है
वतन फ़रोशी की हवाओं का बदलना जरूरी है
काफिर तो करेगा वार,गर हममें फूट होगी
कश्‍मीर से कुमारी तक,हमारा एक होना जरूरी है
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

Tuesday, November 20, 2012

एक सराय की मानिंद रही जिंदगी अपनी

तलाश में इक अदद तेरे सहारे की ....
हर किसी का हम सहारा बनते रहे.....
एक सराय की मानिंद रही जिंदगी अपनी
चंद रोज रूककर मुसाफिर,मंजिल पर बढते रहे
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Monday, November 19, 2012

शेर के मरनें पर फ़राज़,फकत कुत्‍तों की उम्र लंबी होती है

सोचनें बस से कहां मिली जमानें में किसी को चाहत है
तेरे नाम में है मगर तुझसे नही यही शिकायत है
बुरी सोच का नतीजा बुरा आम  एक कहावत है
मर जाऐ तुम जैसे सरफिरे,तो सही राहत है
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़
(यह शेर नये उभरते हुए एक शायर को समर्पित है,
जिनका कहना है कि हर 'ठाकरे' को मरना है

हां यकिनन ये कडवा सच है कि सबको मरनां है
मगर सिर्फ 'ठाकरे' को ही ?
मुझे इसमें उनकी कुंठीत मानसिकता ही दृष्टिगोचर हो रही है ....... परिपक्‍वता की कमी है ......
)


पतलूनें गीली होती है जब शेर की दहाड बुलंद होती है
फतह वही हासिल करते है जिनके हाथ में कमंद होती है
काफिर तो ता उम्र करते है कोशिशे शेर को मिटानें की
शेर के मरनें पर फ़राज़,फकत कुत्‍तों की उम्र लंबी होती है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Sunday, November 11, 2012

फिर दिया इश्‍क का मैनें, तेरे वास्‍ते जला दिया

तेरी जफ़ा, तेरे ग़म, लो आज सारे भुला दिया
तेरी खुशी पर अरमान अपनें खाक में मिला दिया
उम्‍मीदें फिर से, मेरे दिल पर, दस्‍तकें देनें लगी
फिर दिया इश्‍क का मैनें, तेरे वास्‍ते जला दिया
       तेरी जफ़ा तेर ग़म....

तुम भी रहे मज़बूर दिल से,दिल से हम भी रहे
रूस्‍वा तुम भी हुए हमसे,ग़मगीन हम भी रहे
इश्‍क की फुलझडीयॉं अब, फिर से तिडतिडाऐंगी
फिर दिया इश्‍क का मैनें, तेरे वास्‍ते जला दिया
        तेरी जफ़ा तेर ग़म....

रंगे महफिल सजाने का तुम ने, जबसे मन बना लिया
हर इक रंग से, हमनें अपनां, दिलो-दिवार सजा लिया
वस्‍ले इंतिजार में फ़राज़', अब अंधेरों का डर नहीं
फिर दिया इश्‍का का मैनें, तेरे वास्‍ते जला दिया
        तेरी जफ़ा तेर ग़म....
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, November 07, 2012

प्‍यार को मेरे उसनें यारो हुक्‍का बना के रखा है

अपनीं गज़लों नज्‍़मों का हिस्‍सा बना के रखा है
जमानें के लिये मोहब्‍बत का किस्‍सा बना के रखा है
मेरे इश्‍क के नशे में हरपल गुडगुडाती रहती है
प्‍यार को मेरे उसनें यारो हुक्‍का बना के रखा है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

आजकल वक्‍त मेरा साथ नहीं देता
खुद से बढ़कर,  कोई साथ नहीं देता
उम्रभर क्‍या निभाऐंगे वादे वफ़ा मुझसे
इक रात के लिये भी जो साथ नहीं देता
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज'

Friday, November 02, 2012

तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है ?

तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है
चश्‍में पुरनम से दिल का बस,लहू बरस जाना बाकी है

मेरे बुलाने पर तेरा दौड के आना याद आता है
उन यादों का इस दिलसे अभी,निकल जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है

शर्त है तुम्‍हारी तो मिलने से परदा करूंगा, मगर
बाहों में तेरे होने के एहसास से,उबर जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है

गैर के सपनें सजा लिये तुमनें,अब हाथों में अपनें
मेरे हाथों से मगर अरमानों का बिखर जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है

चमन से जुदा होकर फूलों की,उम्र लंबी नही होती
फ़राज़े जिस्‍म से तेरी धडकनों का निकल जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है
राहुल उज्जैनकर फ़राज़

तुम मेरी मोहब्‍बत को, समझ नहीं पायी
मेरे दर्द में तेरी आखें, बरस नहीं पायी
मै चिर भी देता ,पहाड़ों का सीना, मगर
शिरिन तुम इस फरहाद की, बन नही पायी
 राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़ 

मैं गज़ल गाउं तुम साज भी ना छेडो,ऐसा नही होता

शेर अर्ज है.....

तुम अकेली नही हो जो ये कमाल करती हो
एहले,गुलिस्‍तां को खबर है के तुम प्‍यार करती हो
                   गज़ल
वादे वफ़ा हो मगर इकरार ना हो, ऐसा नही होता
बहारे चमन हो और गुल ना खिले, ऐसा नही होता

ये माना के हिज्र की रातें है,और वस्‍ले इंतिजार,मगर
हिचकियां भी ना आये वक्‍त बेवक्‍त, ऐसा नही होता

कागज़ो पे उतार दिये हमनें इश्‍क के, फसानें अपनें
मैं गज़ल गाउं तुम साज भी ना छेडो,ऐसा नही होता

अज़ल से दुश्‍मन है ये दुनिया हम  इशकजादों की
जुल्‍में दरिया हो, फ़राज़ पार नां करे,ऐसा नही होता
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, October 31, 2012

उम्र भर फिर मुझसा, तलाशते रहनां..

वफ़ादारों,खुददारों की गैरत को, आजमाते रहनां
हरपल अपनों की कब्र पर, महल बनाते रहनां
बदली नां गर जो तुमनें अपनीं, सिरते जिंदगी
'फ़राज़' उम्र भर फिर मुझसा, तलाशते रहनां......
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Tuesday, October 30, 2012

शर्माओंगी तो नहीं, तुमको अपनी दिवानी कह दूं

आज इस महफिल में उल्‍फत की कहानी कह दूं
शर्माओंगी तो नहीं, तुमको अपनी दिवानी कह दूं

सितारों ने किया है मुकरर्र,अपनें वस्‍ल का दिन
अपनी मुलाकात को मैं , रूहानी कह दूं

देखता हूं तुमको तो रूह को सूकून ऑंखों को ठंडक आती है
क्‍या तुमको मैं , कश्‍मीर की पुरवा सुहानी कह दूं

देखो 'फ़राज़' पर फिर कोई इल्‍ज़ाम मत लगाना
तेरे रूखसार पे इक गज़ल, बोसों की जब़ानी कह दूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Friday, October 26, 2012

दिखता है हर हुस्‍न वाला फ़राज़, दिले चाराःगर अपनां

वो छुपाती है नाम मेरा सबको बताती नहीं
आग जो वस्‍ल की दिल में है बुझाती नहीं
साथ रहकर भी हमनें गुजारी थी रातें तन्‍हा
अब रूठता मैं भी नही फ़राज़,मनाती वो भी नहीं
        अजीब कश्‍मकश है दिल में

उसका ही नाम लिखता है फ़राज़ हाथों में
हाथों की लकीरों में जिसका नाम नहीं है
वस्‍ले इंतिजार की नाजूक डोर से बंधा है दिल
वो दिल,जिसे उसके बिना कहीं आराम नहीं है
        इस दर्दे दिल की दवा हो तुम

लबों का टकराना गोश ए तन्‍हाई में,याद है नां
उठकर उसके पहलू से निकल जाना,याद है नां
थक गया है फ़राज़ अरमानों की लाश ढोत ढोते
तुमनें कहां था उसकी मैयत पे आओगी,याद है नां
        तुम्‍हारे इंतिजार में.......................

जानें कैसा ये हमनें ग़में उल्‍फत, दिल को लगा लिया
दिखता है हर हुस्‍न वाला फ़राज़, दिले चाराःगर अपनां
        ये वहम है मेरे दिल का..........................
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़' 

तुम बढ़ गये हद से मगर,ये दर्द बढ़ता नहीं

जाने क्‍या कर दिया उसनें इशारा बादलों को
बरसात क्‍यूं ये मेरी ऑंखों से होने लगी है
नाज़ों से कहा था उसने अब मुकद्दर संवर जायेगा
हाथों से हाथ छुटा नहीं और वो रोनी लगी है

पहले पल पल करती थी याद मुझे हिचकियों से
अब तो ख्‍वॉबों से भी नदारत रहनें लगी है
पहले रहती थी दिल में,रूह में,सॉंसों मे फ़राज़
पता बदल गया शायद,अब जानें कहा रहनें लगी है

तेरी जफ़ा से बढ़ता है सुकूं मेरा,इश्‍क घटता नहीं
पॅमानें कर दिये खाली मगर,नशा ये चढ़ता नहीं
नशा कम है शराब में,या मेरी मोहब्‍बत में ज्‍यादा
तुम बढ़ गये हद से मगर, ये मेरा दर्द बढ़ता नहीं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, October 24, 2012

मेरे जुनूं मेरे इश्‍के इबादत से तुमको क्‍या

मेरे जुनूं मेरे इश्‍के इबादत से तुमको क्‍या
वस्‍ल1 का इंतिज़ार हमनें किया,तुमको क्‍या

इक या'लूल2 की मानिंद था प्‍यार तेरा
रंजे उल्‍फत3 में खसूर4 हुआ,तुमको क्‍या

लबेखुश्‍क5 थे ढुढते रहे इश्‍क का चश्‍मः6 तुझमें
खस्‍तःदिल7 तो हमारा हुआ,तुमको क्‍या

कोतहा-नज़र8 अपनी थी,तेरा फरेब न दिखा
बनगये कोकहन9 तेरे लिये,तुमको क्‍या

रफ़ाहत10 की चाहत में बीक जाओगे सोचा न था
रफीके सफर11 अपना माना था,तुमको क्‍या

तेर बादाऐ शौक़12 ने 'फ़राज़' को माइल13 बना दिया
वस्‍ले इंतिजार मे कटेगी उम्र सारी,तुमको क्‍या
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़' 
1-मिलन ! 2-पानी का बुलबुला ! 3-प्रेम वेदना ! 4-दिवालिया, दिवाना 
5-बहुत प्‍यासा ! 6-पानी का झरना ! 7-दरिद्र जिसका हाल खराब हो
8-दूर तक न देखनें वाला ! 9-पहाड चिरनें वाला, फरहाद के लिये बोलते है
10-सुख चैन, ऐशो आराम ! 11-यात्रा का साथी, हमसफर 
12-प्रेम की मदिरा पीने वाला ! 13-आशिक, प्रेमी

Saturday, October 20, 2012

मुझे फिर ना बुलानें आना

जा रहे हो तो देखो, मुझे फिर ना बुलानें आना
सता चुके हो जी भरके,अब ना रूलानें आना
बमुश्किल समेटा है 'फ़राज',पलकों पे तूफां मैनें
अब न करनां याद,ना हिचकी के बहानें आना
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Friday, October 19, 2012

मेरे होने का एहसास ही अलग है

मेरे वजूद का मेरे होने का एहसास ही अलग है
मेरी इबादत का मेरे इश्‍क का एहसास ही अलग है
तुमसे हिफाज़त ना हुई मेरी वफ़ा की मेरे जूनूं की
वर्ना,'फ़राज़'के साथ रहनें का एहसास ही अलग है.


 लफ्जों के तीर ना खंज़र,ना होठों पे गाली होती है
इबादतों के होते है मौसम,लज्‍जतें निराली होती है
तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

प्रेम म्हणजे

♥ ♥ प्रेम म्हणजे ♥ ♥
५ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, मी हळूच रोज त्याच्या दप्तरातील चोकलेट काढणे पण तरी
त्याचे नेहमी तिथेच चोकलेट ठेवणे. ♥
१० वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, एकत्र अभ्यास करताना पेन्सिल घ्यायच्या बहाण्याने
मुद्दामहून त्याने माझ्या हाताला केलेला स्पर्श. ♥
१५ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, आम्ही शाळा बुडवल्या मुळे पकडले गेल्यावर
त्याने स्वताहा एकट्याने भोगलेली शिक्षा. ♥
१८ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, शाळेच्या निरोप समारंभात त्याने मारलेली मिठी आणि
खारट आश्रू पीत पुन्हा भेटण्याचीठेवलेली गोड अपेक्षा. ♥
२१ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, माझ्या कॉलेज ची सहल गेलेल्या ठिकाणी त्याने
त्याचे कॉलेज बुडवून अचानक दिलेली भेट. ♥
२६ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, गुढग्यावर बसून हातात गुलाबाचे फुल घेऊन
त्याने मला लग्ना साठी केलेली मागणी. ♥
३५ वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, मी दमले आहे हे बघून त्याने स्वताहा केलेला स्वयंपाक. ♥
६० वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, तो आजारीअसून, बरेच दिवस बेड वरच असूनसुद्धा मला हसवण्यासाठी त्याने केलेला विनोद. ♥
८० वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, त्याने शेवटचा श्वास घेताना पुढल्या जन्मात लवकरच भेटण्याचे दिलेले वचन..♥
(¯`•.•´¯) (¯`•.•´¯)___
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Thursday, October 18, 2012

अब ना करेंगे हम इश्‍क किसीसे, हार मान ली मैनें

हमपें ना कुर्बां करोगे ये जिस्‍मो-जां, ये बात मान ली मैंनें
अब ना करेंगे हम इश्‍क किसीसे, हार मान ली मैनें

सहरा में भी बहा दूं झरनां,फूल खिलादूं मै
तंगदील को सनम बनाकर, हार मान ली मैंने

है इतनी इबादत के बुत को भी,खुदा बना दूं मै
तेरे सजदे मे सर झुकाकर, हार मान ली मैनें

है आराईश बहोत 'फ़राज़' अगर बिकने पे आओ
दर्द के मोती समेटकर अपनें, हार मान ली मैंनें
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

दिवान-ए-इश्‍क में उसनें नया हर्फ़ खिंचा है

मेरे दिवान-ए-इश्‍क में उसनें नया हर्फ़ खिंचा है
करता इश्‍क हूं या इबादत,आज मुझसे पुछा है

फिरता रहा चश्‍माए खिज्र की तलाश में दरबदर
पांव के छालों का सबब, आज मुझसे पुछा है

फ़ानूस बनके खड़ा रहा हर दौरे मुश्किल में
लगा दूं मरहम तेर हाथों पर,आज मुझसे पुछा है

फिकरों,तानों,लफ़जों के वो बस तीर चलाता रहा
ये रंग है या खूनें‍ जिगर,आज मुझसे पुछा है

चल पड़ा है थाम के वो गैर का हाथ 'फ़राज़'
इश्‍क में दोगे जान या मुझपर,आज मुझसे पुछा है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, October 17, 2012

Generation Next Technology

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दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था


इतना मुझे सताऐंगे सोचा न था
दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था

उसकी चुड़ीयों से खनकता था घर-आंगन
वो,साज सारे तोड़ जाऐंगे सोचा न था

तिनका तिनका जोड़कर आशीयां बनाया था

यूं उजाडेंगे घौसले परिंदो के सोचा न था

मुझे याद है उन्‍हे बारीश की बूदे पसंद है
बरसात मेरी ऑंखो से करायेगे सोचा न था

ख्‍वॉबों में भी कभी उनसे बिछड़ना गवांरा न था
'फ़राज़' वो रकी़ब से दिल लगायेंगे सोचा न था
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'


Tuesday, October 16, 2012

मेरी बाहों से बिछडनें में जिसे डर लगता था

गैर की बाहों मे लिपटनें को उतावला है वो
मेरी बाहों से बिछडनें में जिसे डर लगता था
अश्‍कों से भर दिया उसनें उन पलकों का आंगन
जिन ऑखों मे कभी उसे अपनां घर लगता था
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

प्‍यार, वफ़ा, इश्‍क, मोहब्‍बत कुछ नहीं होता

प्‍यार, वफ़ा, इश्‍क, मोहब्‍बत कुछ नहीं होता
सौदा होता है जज्‍बा़तों का,और कुछ नहीं होता

वादा भी करते हैं वो ख्‍वॉबों में मिलेंगे
जागता रातभर रहता हूं,और कुछ नहीं होता

चाहा के मांग लूं एक बोसा उल्‍फत की निशानी
होठ थर‍थरा के रह जाते है,और कुछ नहीं होता

साथ थे तो वादे करते थे जिने और मरनें के
जिंदगी मुहाल होती है वादों से,और कुछ नहीं होता

खून ए दिल से रोज उसको ख़त लिखता है 'फ़राज़'
कलम की धार पैनी होती है,और कुछ नहीं होता
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

मै तुम्हे ढूंढने, स्वर्ग के द्वार तक..


मै तुम्हे ढूंढने, स्वर्ग के द्वार तक...!
रोज़ जाता रहा , रोज़ आता रहा...!!

तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई...!
मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा...!!
(Base Line Pickup from Dr. Kumar Vishwas ji...)

तुम संवेदना शून्‍य बनकर मेरे भावों को छलती रही
मैं अपनें ही रक्‍त से तुम पर प्रेम गान लिखता रहा ..........

तुम्‍हारी प्रेम तृष्‍णा में, मैं याचक से चातक बना
स्‍वाती नक्षत्र सा प्रेम तुम्‍हारा, मैं बस बाट जोहता रहा........

मेरे ह्रदय के करूण कृंदन से हो न जाओ विचलित कही
श्‍ाब्‍दों से गीतों में परिवर्तित कर तम्‍हे, गुनगुनाता रहा...............
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़

Tuesday, October 02, 2012

बडा जि‍द्दी है कमबख्‍त इसे समझाया नही जाता


बडा जि‍द्दी है कमबख्‍त इसे समझाया नही जाता
उस संगदील को यारों हमसे मगर भुलाया नही जाता

फुर्सत ही नही मैं लाख पुकारू,बुलाउं या मनाउं उसको
उस खुशनसीब का मगर हमें बुलाना जाया नही जाता

सब तो ले गया वो मुझसे वादे,वफा,चैनो करार मेरा
लुटाकर दिल की अमानत कुछ और बचाया नही जाता

ईद होती है अपनी,जब उससे मुलाकात या बात होती है
ऐसे रूहानी मौसम में फिर मातम  मनाया नही जाता

खूने दिल चाहिये उसे सुर्ख लाल बने मेहंदी उसके हाथों की
किसी की आखरी तमन्‍ना को'फ़राज़'ठुकराया ही नही जाता
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Sunday, September 23, 2012

जानें क्‍यूं रूक गया था कहते कहते ,आज सोचता हूं


शेर अर्ज है...............
ये अश्‍को की कहानियां है,लबों से बोली नही जाती
ऑंखों ने की है बगावत,पलकों से रोकी नही जाती
...........

                   गज़ल

जानें क्‍यूं रूक गया था कहते कहते ,आज सोचता हूं
थम सा क्‍यूं गया था बहते बहते, आज सोचता हूं

वक्‍त की रेत पर बिखर गये क्‍यूं सपनों के मोती
क्‍यूं थाम रहा था रेत को मुठ्ठी में,आज सोचता हूं

अज़नबी बनते गये,मेरे आस पास के सभी चेहरे
किस अपनें को खोजता रहा ता उम्र,आज सोचता हूं

उंची बोली लगी थी मेरे प्‍यार की,चुकाई नां गयी
क्‍यूं ना बेची 'फ़राज़-ए-वफ़ा' उस रोज,आज सोचता हूं

राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Thursday, September 20, 2012

क्‍या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं

लाल सुर्ख है उसके पांव की मेहंदी,जरा देख तो लूं
क्‍या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं

मद्दतों मेरे पहलू में रहा उमडती घटाओं की तरह
रक़ीब़ की बाहों में अब बरसना उसका जरा देख तो लूं

दिवानगी में भी हदों से पार न हुआ महफूज़ रहा
आज मगर बिखरनां उस जज्‍ब़ात का जरा देख तो लूं

था इल्‍म, तेरे वादे-वफा-मोहब्‍बत की रस्‍में सब फ़रेब़ है
अपनी इश्‍के वफ़ा का मौत-ए-लुत्‍फ जरा देख तो लूं

थी मेरी दिवानगी बिना दाम ही बिक गये हम फ़राज़
अब टके-टके पर मुस्‍कुराना उसका,जरा देख तो लूं
               लाल सुर्ख है पांव की मेहंदी......
राहुल उज्‍जैकनर 'फ़राज़'

Wednesday, September 05, 2012

इतने बेगैरत है दोस्‍त तो दुश्‍मनों की जरूरत किसे है

इतने बेगैरत है दोस्‍त तो दुश्‍मनों की जरूरत किसे है
आस्‍तीन में हो सांप तो ज़हर की जरूरत किसे है
मैं लुटा भी दूं इनपें अपनां इमानों दिल खुलकर,मगर
ज़मीर बेच आये है ये,अब ईमान की जरूरत किसे है

मेरे शहर की फिजाओ ने भी अब नूर बदलना सीख लिया
चेहरे पर नये नक़ाब लगाने की अब जरूरत किसे है
रोज के मिलनें वालें है ये,फिर भी पहचान दिखाते नहीं
भीड़ में मेरा नाम पुकारनें की अब जरूरत किसे है

मीनारें तन गई राहों में और मैदानों में मीनाबाज़ार
गांवों की सकरी गलीयों की अब जरूरत किसे है
बारूदों से तय होती है अब सरहदों की दूरियां
चैनों अमन की जिंदगी की,अब जरूरत किसे है

अपनीं गरज़ से बनते बिगडते है रिश्‍तों के मौसम
बचपन वाली मासूम बारीश की अब जरूरत किसे है
अब तो आदत हो गई है फराज कतरा कतरा मरनें की
यहां आकर जल्‍द जानें की अब जरूरत किसे है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Thursday, July 26, 2012

चाहा था मैंने भी तेरे साथ फनां हो जाना, मगर....

रफ्ता रफ्ता जिंदगी ने भी रफ्तार बढा दी है
सफेदी मेरे बालों की तर्जुबों ने बढा दी है

पन्‍ने दर पन्‍ने मैं वक्‍त के पलटता गया
झुर्रियां ये मेरे बदन की इंतिजार नें बढा दी है

खामोश रहता हूं कभी, कभी खुद से बांते करता हूं
दिवानगी मेरी फिरसे, तेरी कमीं ने बढा दी है

चाहा था मैंने भी तेरे साथ फनां हो जाना, मगर....
जिंदगी ''फ़राज़''की, तुझसे किये वादे ने बढा दी है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

सचमुच सपनां सा लगता है वो सब


कितना कुछ हुआ मेरे साथ....
तुम्‍हारे साथ...
कितना कुछ सोच लेते है हम
परिणामों की चिंता किये बगैर
तो कभी...
परिणामों के साथ
तुम्‍हारी तो आदत थी
हमेशा, डरते रहनें की
और मेरी ?
डराते रहनें की ....शायद....
कितना कुछ सहा तुमनें
कहा तुमनें
मेरे प्रेम के लिये.... अपनें प्रेम के लिये
आज सोचता हूं...
तो सचमुच
सचमुच सपनां सा लगता है.......

आने वाले समय से डरते हुए

एक दुसरे को तसल्‍ली देते थे
लेकिन...........
कहीं दूर तक बिछडनें के डर से डरते हुए
कैसा खेल था, तकदीर का
कितनी तन्‍हा थी तुम,वहॉं...
अपनों ही के बीच, अजनबीं की तरह
और.....मैं ?
अपनें साथ सबका समर्थन लिये हुए....
कैसे गुजरा होगा तुम्‍हारा वक्‍त ?
अजनबी बननां, अपनें ही लोगों में........
आज सोचना हूं तो सचमुच..
सचमुच सपनां सा लगता है.....

पता नहीं हमनें कितनें संबंध..
बनाये है , या कितने बिगाडे है
मगर एक बात जो मुझे लगती है...
वो ये .....
कि....
हमनें अपनें वादे निभाये है
एक दुसरे से किये वादे
एक दुसरे के लिये किये वादे....
आज सोचता हूं न... 'फ़राज़'.....
तो सचमुच....सचमुच
एक सपनां सा लगता है..
सपनां सा लगता है !!

राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, July 11, 2012

कुछ लोग तुझसे हरवक्‍त मुझे मिलनें नही देते

कुछ लोग तुझसे हरवक्‍त मुझे मिलनें नही देते
गुलशन मेरे अरमानों के ये खिलनें नही देते
देते है फ़रेब 'फ़राज़',हर वक्‍त मुझे लफ़जों से
परवान ये मोहब्‍बत को मेरी चढनें नही देते
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
____________________________________________
भूल जानें वालों में मुझे शुमार1 करनें वाले
नीमबाज़2 ऑखों से मुझे बिमार करनें वाले
होके मेहरबां मुझे अपनी अंजुमन3 में शुमार कर
बेशुमार बेकदरों में'फ़राज़'को शुमार करने वाले
राहुल उज्जैदनकर 'फ़राज़'

1-शामिल करनां
2-नशीली ऑखें
3-महफिल,सभा
 
____________________________________________
हर गम से इस जमानें को जुदा करगये जो
इस इश्‍क पें अपनीं जॉं निसार कर गये जो
उनकी कब्र पे चिराग भी नही जलते 'फ़राज़'
मोहब्‍बत को जमानें में खुदा करगये जो...
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
____________________________________________ 
हर गम, हर खुशी, हर अपनें, में तलाश करता हूं
हर कायनात, हर ज़र्रे, हर शै, में तलाश करता हूं
बनकर प्‍यार, 'फ़राज़'के दिल में समानें वाले
तुझे दिल के हर इक कोने में तलाश करता हूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
 ____________________________________________ 
 दिल-ए-सहरा में प्‍यार का चमन लगाओ तुम
बे-रौशन है दुनिया प्‍यार का चिराग जलाओ तुम
जब कहती हो की,तुम्‍हे मोहब्‍बत है मुझसे..तो
बनके दिवानी किसी दिन गले लगाओ तुम !!
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'
____________________________________________

Tuesday, June 26, 2012

फलक की जन्‍नत मेरी निगाहों में है


नूर-ए-आफताब0 तेरी निगाहों मे है |
आसमां का चांद तेरी आरिजों1 में है ||
गेसुओं में समेटा है,घटाओं को तुमनें |
कत्‍लेआम इस दिले गरीबखानें में है ||
या खुदा 'फराज' जिंदा है या मुर्दा |
फलक2 की जन्‍नत मेरी निगाहों में है ||
राहुल उज्‍जैनकर 'फराज' 

0=सूर्य का तेज

1=रूखसार, गाल
2=आसमान, आकाश 

हर गम, हर खुशी, हर अपनें, में तलाश करता हूं
हर कायनात, हर जर्रे, हर शै, में तलाश करता हूं
बनकर प्‍यार, 'फराज'के दिल में समानें वाले
तुझे दिल के हर इक कोने में तलाश करता हूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फराज'
 

Sunday, June 24, 2012

हम आजकल उनसे खफा हुए बैठे है

बिमारे दिल की जैसे दवा हुए बैठे है
हम आजकल उनसे खफा हुए बैठे है

ना रास्‍तों का पता,न मंजिल का
नां कारवां की तलाश,ना साहिल की
सोया नहीं मैं जाने कितनी सदियों से
आज याद आया,तो हिसाब लिये बैठे है
हम आजकल......

फिर वो रूठ जायेगी मेरे मनाने के बावजूद
फिर आंसू बहायेगी मेरे हसांने के बावजूद
मुझसे भी जज्‍ब होता नहीं ये आलम,वो आये तो
हम आज अपनी ऑखों में,सैलाब लिये बैठे है
हम आजकल......

मेरी रूह तक पहुंचे थे तुम,कभी ऑंखो के रास्‍ते
मुझपर ही खत्‍म होते थ्‍ो तेरी उम्‍मीदों के रास्‍ते
सोचता हूं सौंप दूं तुम्‍हे वापस रिश्‍तों के अवशेष
बेडियां जो पांवो में थी,हाथों में लिये बैठे है
हम आजकल ........

क्‍या खोया,क्‍या पाया और नहीं सोचा जाता
रिश्‍तों का यूं बिखरनां,और नहीं देखा जाता
'फ़राज़'इन रिसते जख्‍मों पर मरहम तो रख
कब से हम अपनीं आंखों में नमक लिये बैठे है
हम आजकल उनसे खफा हुए बैठे है..........

राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

Wednesday, June 06, 2012

'फराज' को मरनें के वो रोज नये मशविरे देता है


देखिये हुस्‍न कैसे कैसे फरेब देता है 
पलके उठाकर नजरों से जहर देता है 

तजुर्बा भी शरमा जाये, इक पल के लिये 
बच्‍चा आज का ऐसे-ऐसे सवाल देता है 
देखिये ........ 

तुमनें नही सुना होगा, मगर आज ऐसा होता है 
लोग सच्‍चे हो, तो आईना भी वहम देता है 
देखिये.......... 

नये जमानें के नये तेवर है, क्‍या कहें 
मेरा घर ठीक से जले, इसलिये पडोसी हवा देता है
तुमको गये..............

जोश में हमनें कह दिया था इश्‍क में जान देंगे
'फराज' को मरनें के वो रोज नये मशविरे देता है
राहुल उज्‍जैनकर ''फराज'' 

तुमका गये अर्सा हो गया

वक्‍त बे वक्‍त यूं ही, बस मुस्‍कुराने को दिल करता है 
तुमका गये अर्सा हो गया, अब भुलानें को दिल करता है 

तेरे मेरे बीच कभी इकरार हुआ करता था 
यादों से अब तेरी तकरार को दिल करता है 
तुमको गये........... 

उजाले भर का साथ्‍ा नहीं, ये यकिन दिलाया करती थी 
अंधेरों को आज गले लगा, बहकनें को दिल करता है 
तुमको गये........... 

लब हमारे यूं मिले थे, मानों दो जिस्‍म रूह एक हुई 
अपनें हिस्‍से की कजा पर, जश्‍न करनें को दिल करता है
तुमको गये................. 

उसमें ना जुनुने इश्‍क था, ना वफा, ना कोई जज्‍बात 
'फराज' तेरी दिवानगी पर, लानते देनें को दिल करता है
तुमको गये अर्सा हो गया............... 

राहुल उज्‍जैनकर 'फराज'

Tuesday, June 05, 2012

हमें हार-जीत से क्‍या

 हार जीत की कश्‍मकश में वो पडते है जिन्‍हे कुछ कर दिखाना हो
अरे,जमानें में हम खुद एक मिसाल है हमें हार-जीत से क्‍या
राहुल उज्‍जैनकर ''फराज''

Friday, May 18, 2012

मॉं तुझको खोजा करती हूं

निपट अकेली रातों में मैं
तुझको खोजा करती हूं
स्‍मृतियां जितनी भी है पास मेरे
मॉं, उनको जोडा करती हूं 

 तुम क्‍या रूठी मुझसे मॉं 
खुशीयों का दामन छुट गया 
चंचल-शोखी-अल्‍हड वाला
बचपन भी मुझसे रूठ गया
पापा की गोदी में भी 
गुमसुम अकेली सोया करती हूं 
                            निपट अकेली... स्‍मृतियां
धुंधली-धुधली यादें है,जब 
तुम लोरी सुनाया करती थी
हम पर अपनां स्‍नेह तुम 
सागर सा लुटाया करती थी
सिधे सरल रिश्‍ते क्‍युं भला
आज, ऐसे क्लिष्‍ट बनें 
अक्‍सर ये सोचा करती हूं  
                            निपट.......स्‍मृतियां

तुम कहती थी नां मॉं,जो हमसे
रूठ के जाते, तारे बना करते है
दूर आसमां से हमको वो फिर 
अपलक निहारा करते है 
इतनी सारी मॉंओं में, मॉं 
तुझको देखा करती हूं 
                             निपट...........स्‍मृतियां 

इक-इक पल में भी जानें
कितनी सदियां रहती हैं
 ऑंखों से अब आंसू नहीं
अश्‍को की नदियां बहती है 
तेरे स्‍नेहिल स्‍पर्शों का मैं
निसदिन अनुभव करती हूं 
                             निपट...........स्‍मृतियां 


तुमसे ही तो सिखा मैंने
मॉं की ममता बहन का स्‍नेह
रेशम की डोरी से बंधा 
अद्भुत और अलौकिक नेह 
अपरिपक्‍व इन रिश्‍तों को अपनें
ह्रदय रक्‍त से सिंचा करती हूं
                           निपट...........स्‍मृतियां 

बहनों का श्रृंगार किया 
नये रिश्‍तों का स्‍वीकार किया
उनका उनकी दुनियां में फिर 
खो जाना भी स्‍वीकार किया 
अपनें स्‍वयंवर में मगर..... 
पतझड वन सी रहती हूं 
                            निपट...........स्‍मृतियां 

अहंकरों के पाटों के बीच
पिसती ही क्‍यूं नारी है 
कन्‍यादान से भी बढकर, क्‍या 
अहं-दंभ ही भारी है 
वर्षों से ही इन प्रश्‍नों के
मैं, उत्‍तर खोजा करती हूं 
               निपट अकेली रातों में मैं
               तुझको खोजा करती हूं
               स्‍मृतियां जितनी भी है पास मेरे
               मॉं, उनको जोडा करती हूं
राहुल उज्‍जैनकर ''फराज'' 

Sunday, May 13, 2012

हम भी अब समझे है,के कुछ भी नही समझे

ऐसा कौन है जो तुझको समझ पाया है (सॅम)
हम भी अब समझे है,के कुछ भी नही समझे


वैसे मुश्किल नहीं हे तुम को समझना
मुश्किल ये है के, मै मुश्किल से समझता हूं
राहुल उज्‍जैनकर 'फराज'

हम हौसलों से लबरेज है

जनाब! अगले जनम का ऐतबार वो करते है
जिनको हौसलों से परहेज है
हम तो आये ही दौर ए मुश्किल में है
हम हौसलों से लबरेज है
राहुल उज्‍जैनकर 'फराज'

Monday, May 07, 2012

जब सावन आया


हर पेडों पर नये पत्‍ते आये हर कली इक फूल बनीं 
मेरे दिल में उम्‍मीदों का गुलशन खिला जब सावन आया


पहाडों से दरिया बहे परिन्‍दों ने भी अब गाना गाया 
तरन्‍नुम मोहब्‍बत के फुटे मेरे दिल से जब सावन आया 


दिखनें लगे है अब घौसलें परिन्‍दों के हर इक डालों पर 
मुझमें भी तम्‍मनां घरौदें की जागी,जब सावन आया 


फूलों पर मंडराते भंवरे तितलियों का भी है अपना शोर 
मैं भी इक फूल चुनुं ऐसा लगा,जब सावन आया 


परिन्‍दों के जोडे अब तो रोज ही मेरे आंगन में आते है 
''फराज'' का भी कोई होता साथी ऐसा लगा जब सावन आया 
राहुल उज्‍जैनकर ''फराज'' 

पतझड के मौसम में


झड गये पत्‍ते सभी दरख्‍तों के, इस पतझड के मौसम में 
ऐसा ही है कुछ हाल दिल का, इस पतझड के मौसम में 

दरिया सुखे और प्‍यास बढी दरख्‍तों की, पतझड के मौसम में 
हम भी तरसे है पानी को इसबार, पतझड के मौसम में 

खिलनी थी जो कलिया वो मुरझा गयी, पतझड के मौसम में
खिल न सकी मेरे दिल की भी उमंगे, इस पतझड के मौसम में

जो ये बादल बरसेंगे तब सुकुन मिलेगा इन दरख्‍तों को 
बिखरी जो जुल्‍फे  तेरी, अबके इस पतझड के मौसम में 

उतर रही छाले पेडों की भी, इस पतझड के मौसम में 
अबके बरस मेरे पैरो में पडे छाले, पतझड के मौसम में 

बिछड गये परिन्‍दे सभी इन दरख्‍तों से पतझड के मौसम में
''फराज'' को तुम याद बहोत आये, इस पतझड के मौसम में

राहुल उज्‍जैनकर ''फराज''

यादों में तेरी अब भी जीये जा रहा हूं

कहनें पे तेरे ही जिये जा रहा हूं 
पुछो न अश्‍क कैसे पिये जा रहा हूं

          तेरी ख्‍वाहिश तेरी चाहत जब भूलाना है
          क्‍युं तेरा नाम हर पल लिये जा रहा हूं 

लौटकर अब नही आना ये गुजारिश है 
अलविदा तुमको मेरे मालिक किये जा रहा हूं 
          आया नही पिलाना तुमको नजर से हमदम 
          पैमानो से ही हरपल मय पिये जा रहा हूं 

ऑंखो मे आके इक दिन दिल में समा गये
दिल को उसी मै तन्‍हा अब किये जा रहा हूं

           तुम भूल जाना तुमको याद हम किया करेंगे 
           यादों में तेरी अब भी जीये जा रहा हूं 
राहुल उज्‍जैनकर ''फराज''


प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ? इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ? तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम...