Saturday, December 01, 2012

कितनी जल्‍दी सबकुछ खत्‍म हो गया

कितनी जल्‍दी, सबकुछ अचानक से
खत्‍म हो गया
मेरे हृदय का कृंदन
तुम्‍हारे 
गुंज में शहनाई की
लुप्‍त हो गया
तुम सुनती भी कैसे ?
इतनें कोलाहल में
मेरे स्‍वप्‍नों का
टुटकर बिखर जाना

कितनीं सादगी से
तुमनें
अपनें हाथों में मेहंदी
रचाली
ऑंखों से बहते मेरे
हृदय रक्‍त को
सहेज कर

व्‍यर्थ ही तो जायेंगे अब
मेरे अरमानों के ये
पंख सारे
ले लो इन्‍हे......
अपनें नये घौंसले में
सजा लेना...
एक नयी दुनिया अपनी
बसा लेना...

तीव्र है अभी ज्‍वाला
जलती हुई आशाओं की...
तप्‍त है भावनाऐं
स्‍वाहा होने को आतुर..

प्रत्‍येक स्‍वप्‍न,प्रत्‍येक क्षण
चुंबन - आलिंगन के वो
निरव क्षण...
भस्‍म होने को लालायित है
उठ रही है जबतक..
उंची ये लौ..
फेरे सात लगा लो तुम
फिर करके सदा को..
विस्‍मृत मुझे......
सेज-सुहाग की सजा लो तुम
     सेज-सुहाग की सजा लो तुम
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

1 comment:

  1. Hello, thanks Rahul. Good work yourself :). You can also keep up with my posts on the Aparna R Bhagwat facebook profile.

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