Friday, October 19, 2012

मेरे होने का एहसास ही अलग है

मेरे वजूद का मेरे होने का एहसास ही अलग है
मेरी इबादत का मेरे इश्‍क का एहसास ही अलग है
तुमसे हिफाज़त ना हुई मेरी वफ़ा की मेरे जूनूं की
वर्ना,'फ़राज़'के साथ रहनें का एहसास ही अलग है.


 लफ्जों के तीर ना खंज़र,ना होठों पे गाली होती है
इबादतों के होते है मौसम,लज्‍जतें निराली होती है
तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

2 comments:

  1. इबादतों के होते है मौसम,लज्‍जतें निराली होती है
    तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
    हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
    ..बहुत खूब!

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    Replies
    1. धन्‍यवाद कविता जी

      सादर !

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