मेरे वजूद का मेरे होने का एहसास ही अलग है
मेरी इबादत का मेरे इश्क का एहसास ही अलग है
तुमसे हिफाज़त ना हुई मेरी वफ़ा की मेरे जूनूं की
वर्ना,'फ़राज़'के साथ रहनें का एहसास ही अलग है.
लफ्जों के तीर ना खंज़र,ना होठों पे गाली होती है
इबादतों के होते है मौसम,लज्जतें निराली होती है
तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
मेरी इबादत का मेरे इश्क का एहसास ही अलग है
तुमसे हिफाज़त ना हुई मेरी वफ़ा की मेरे जूनूं की
वर्ना,'फ़राज़'के साथ रहनें का एहसास ही अलग है.
लफ्जों के तीर ना खंज़र,ना होठों पे गाली होती है
इबादतों के होते है मौसम,लज्जतें निराली होती है
तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
इबादतों के होते है मौसम,लज्जतें निराली होती है
ReplyDeleteतुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
..बहुत खूब!
धन्यवाद कविता जी
Deleteसादर !