भूलता जा रहा हूं सब
अपनें अतित के पन्ने
दिनों पहले सहेज कर
रख दिये थे कहीं.....मैंने...
अचानक से मिल गये कुछ....
हर इक सफे पर
हर एक लफ्ज
अब भी ताजा मालूम देता है.......
खेत की सरहद पर लगी
इमली की तरह
हलक से उतर कर
दिमाग को सुकुन देती.....
बारीश के मौसम में
तुम्हारे आंचल की छत जैसा
अरसा हो गया....
बारीश में भिगे...
ठिठुरते हाथों में
चाय की प्याली थामें....
और भी बहोत से पन्ने थे
मगर.....
भूलता जा रहा हूं सब.....
भूलता जा रहा हूं सब.....
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
अपनें अतित के पन्ने
दिनों पहले सहेज कर
रख दिये थे कहीं.....मैंने...
अचानक से मिल गये कुछ....
हर इक सफे पर
हर एक लफ्ज
अब भी ताजा मालूम देता है.......
खेत की सरहद पर लगी
इमली की तरह
हलक से उतर कर
दिमाग को सुकुन देती.....
बारीश के मौसम में
तुम्हारे आंचल की छत जैसा
अरसा हो गया....
बारीश में भिगे...
ठिठुरते हाथों में
चाय की प्याली थामें....
और भी बहोत से पन्ने थे
मगर.....
भूलता जा रहा हूं सब.....
भूलता जा रहा हूं सब.....
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
बहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद यशवन्त जी.....
Deleteएक प्रयास मात्र है.... आपको इस तरह के लेखन में महारत हासिल है
सादर
Bahut khoob ... Yadon mein loutati rachna ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार नासवा जी
Deleteसादर
कोमल अहसास लिए
ReplyDeleteसुन्दर रचना.....
:-)
आदरणीय माथुर जी,
ReplyDeleteआपको भी आग्ल नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाऐं
सादर नमन
राहुल