लाल सुर्ख है उसके पांव की मेहंदी,जरा देख तो लूं
क्या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं
मद्दतों मेरे पहलू में रहा उमडती घटाओं की तरह
रक़ीब़ की बाहों में अब बरसना उसका जरा देख तो लूं
दिवानगी में भी हदों से पार न हुआ महफूज़ रहा
आज मगर बिखरनां उस जज्ब़ात का जरा देख तो लूं
था इल्म, तेरे वादे-वफा-मोहब्बत की रस्में सब फ़रेब़ है
अपनी इश्के वफ़ा का मौत-ए-लुत्फ जरा देख तो लूं
थी मेरी दिवानगी बिना दाम ही बिक गये हम फ़राज़
अब टके-टके पर मुस्कुराना उसका,जरा देख तो लूं
लाल सुर्ख है पांव की मेहंदी......
राहुल उज्जैकनर 'फ़राज़'
क्या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं
मद्दतों मेरे पहलू में रहा उमडती घटाओं की तरह
रक़ीब़ की बाहों में अब बरसना उसका जरा देख तो लूं
दिवानगी में भी हदों से पार न हुआ महफूज़ रहा
आज मगर बिखरनां उस जज्ब़ात का जरा देख तो लूं
था इल्म, तेरे वादे-वफा-मोहब्बत की रस्में सब फ़रेब़ है
अपनी इश्के वफ़ा का मौत-ए-लुत्फ जरा देख तो लूं
थी मेरी दिवानगी बिना दाम ही बिक गये हम फ़राज़
अब टके-टके पर मुस्कुराना उसका,जरा देख तो लूं
लाल सुर्ख है पांव की मेहंदी......
राहुल उज्जैकनर 'फ़राज़'
कल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
पुनः आपकी गुणग्राहकता को सादर धन्यवाद ................ यशवंत जी
Deleteआभार
वाह बहुत खूब राहुल जी.....
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल...
अनु
अनु जी आपकी सराहना के लिये हार्दिक धन्यवाद, आप सभी के प्रोत्साहन से मुझे लिखने हेतु बल प्राप्त होता आया है और आगे भी होता रहेगा इसी आशा के साथ
Deleteसादर
राहुल 'फ़राज़'
रक़ीब़ = अर्थात एक व्यक्ति के दो चाहनें वाले,
ReplyDeleteदोनों आपस में एक दुसरे के रक़ीब़ होते है
ग़ज़ल अच्छी लगी
ReplyDeleteachchhe rachana Rahul ji, badhayi
ReplyDeleteदिवानगी में भी हदों से पार न हुआ महफूज़ रहा
ReplyDeleteआज मगर बिखरनां उस जज्ब़ात का जरा देख तो लूं.......वाह चीर गया भीतर तक यह ख्याल ...बहुत सुन्दर.....राहुलजी!
दिवानगी में भी हदों से पार न हुआ महफूज़ रहा
ReplyDeleteआज मगर बिखरनां उस जज्ब़ात का जरा देख तो लूंबहुत शानदार ग़ज़ल शानदार भावसंयोजन हर शेर बढ़िया है आपको बहुत बधाई
बेतरीन .शानदार... गजल.....
ReplyDeleteआभार !!!
आप सभी को शत शत सादर धन्यवाद, आप सभी नें मेरी इस रचना को इतना डूबकर पढा, सचमुच ये जशवंत जी के ही कारण सार्थक हो पाया है उनके ही कारण आप जैसे पाठकों का इतना असिमित स्नेह प्राप्त हुआ.
ReplyDeleteसादर आभार