Sunday, December 09, 2012

घर में जब आते हो,तो ठहर क्‍यों नहीं जाते



तेरा मेरे खयालों में ये,आना जाना किस लिये
ज़ख्‍मों को हरपल,हरा करते रहना किस लिये
घर में जब आते हो,तो ठहर क्‍यों नहीं जाते
अश्‍क बनकर फिर यूं निकल जाना किस लिये.......


रास्‍ते जब बदल गये,तो मिलना किस लिये
उम्‍मीदें टुट गयी,तो फिर जुडना किस लिये
कहकर तो गये थे,तुझसे कोई वास्‍ता न रहा
दिवानें की तरह मेरा नाम,पुकारना किस लिये.......


ये जश्‍न ये आराईश ये मिनाकारी किस लिये
ये संदल की महक,ये जिस्‍में रौनक किस लिये
मैयत में कभी शादी का, कलमा नहीं पढतें
फ़राज के नाम कि मेंहंदी फिर सजाना किस लिये........
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

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