Thursday, July 02, 2015

बरेच दिवसात

बरेच दिवसात
आज तुझाा पाठलाग केला
तुला सुध्‍दा कळलं नसेल...
पवारांच्‍या.... मळ्यात
बाजीरावांच्‍या..... तळ्यात
जुहु बीच च्‍या....., त्‍या जुन्‍या
लेम्‍पोस्‍ट च्‍या जवळ....
प्रत्‍येक जागी.......
माझा आवडता, तुझा तो
गुलाबी रंगाचा सूट......
त्‍यात तू, फूलराणीच दिसायची......
आज ही दिसत होती.....,
तशीच.....
.
मग तू घरी परतलीस
अण् मी ही.....
मला मात्र आत येता आलं नही
तुझ्या घराचं,
कुंपण आडव आलं......
आठवणींना मात्र...
कसलेही कुंपण
आडवं येत नाही
कुणी त्‍यांना
अडवूच शकत नाही
पण.......
गरीबाला इतकं उंच कुंपण
सहजा-सहजी कसे
पार करता येणर ?
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
©® राहुल उज्‍जैनकर 'राहुल'

Thursday, June 18, 2015

इन दिनों

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      एक ग़ज़ल पेश-ए-खिदमत है
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हर शख्स नें अपनें हिस्से के धागे,
बड़े गुरुर से तोड़े थे ।
आज, जगह जगह इनमें गांठे,
पड़ी हुई है इन दिनों।

वो जिसने बचपनें में,
गिरा दिए थे, अरमानों के घरोंदे।
मेरे हर एक ज़ख्म की उनको,
हाय लगी हुई है इन दिनों.......

वक़्त था मुफलिसी का तो,
हर एक शख्स का दर बंद था।
हर खासो-आम के लिए मेरा,
दर खुला हुआ है इन दिनों।

अब भी वक़्त है बहा दो सारे,
गीले-शिकवों के आंसू।
मेरे शहर में बरसात का,
मौसम चल रहा है इन दिनों।
©®राहुल फ़राज़
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Wednesday, April 15, 2015

तुझपे फनां होनें की ख्वाहिश

मेरे लबों का तेरे लबों से मिलना ,मुमकिन हो जाए,काश ।
किसी रोज़ तू मेहरबाँ होके, मेरे पहलु में आ जाये ।

इस कदर पियूँ ,मय तेरे लबों से दिलबर मेरे ।
के फिर सारी उम्र को ये नशा , तारी रह जाए ।

किसी रोज़ समेटलो हमें अपनी बाहों में, इसकदर ।
के, तेरी मरमरी बाहें , बस मेरी ज़ागीर हो जाए ।

मत कर लिहाज़ जमाने का, बस अपने दिल की कर ।
एक रात में तेरी मेरी, बसर पूरी ज़िन्दगी हो जाए ।

इस दीवाने की है आखरी ख्वाहिश, तुझपे फनां होना ।
काश के फ़राज़ तेरी ये बंदगी, कभी क़ुबूल हो जाए ।
©®राहुल फ़राज़

Tuesday, March 24, 2015

ज़िन्दगी भी,मुसाफिरखाना बनके रह गई

अपने रिश्तों की आग से, जलता रहा मकान अपना ।
ठिठुरन भी अपने घर में, बरबस झुलस के रह गई ।।

मौसंम कोई हो, मेरी आखोंका आलम यही रहता है ।
बारीश भी मेरे आसूआें संग रेाती बिलखती रह गई ।

सडान्ध मारते है अब, रिश्तों पर पडे अहंकार के छाले ।
मिट्टी की सोँधी खुशबु भी इक बद-हवा बनके रह गयी ।।

वादा-वफा-ईमान-मोहब्बत , इन लफजो की बजनदारी भी ।
कबाडी के ठेले पर बिकती, दो कौड़ी की रद्दी बनके रह गई ।।

ग़रज़ के बदले रिश्ते बने, ग़रज़ बदलते रुखसत हुए ।
फ़राज़ तेरी ज़िन्दगी भी,मुसाफिरखाना बनके रह गई ।।
©®राहुल फ़राज़

Friday, February 27, 2015

ओठां‍नी टिपले असेल कदाचित

ओठांवरती ठसा ओठांचा , उमटुन गेला असेल कदाचित
तुझे सौंदर्य नज़रे न टिपता, ओठां‍नी टिपले असेल कदाचित

अंधर नव्‍हता इतुका ,जेव्‍हा, तू बिलगली मम ह्रदयाशी
चंद्र नव्‍हता चावट त्‍यानें, डोळे मिटले असेल कदाचित

मी भ्रमर तुझ्या सौंदर्याचा, त्‍या भ्रमराशी काय युति
तुझे अधरामृत, तो भ्रमर, प्राशून गेला असेल कदाचित

तूच मेनका, तूच रंभा, तूच मदालसा असेल कदाचित
तुझ्याच मादक गंधानी मी, मोहून गेला असेल कदाचित
©®राहुल उज्‍जैनकर ‘राहुल’

Saturday, February 21, 2015

भावनेला वाहू द्यायचे

एका लेखकासाठी कलम (लेखनी) हेच त्‍याचे शस्‍त्र असते,
याच भावनेंने मी ही कविता लिहायचा प्रयत्‍न
केला आहे.......

पुन्‍हा घ्‍यायचे शस्‍त्र हातात आणि, भावनेला वाहू द्यायचे
आहे जो वरी श्‍वास श्‍वासात, प्रयाण असेच चालू द्यायचे

किती रम्‍य नयन तुझे, दोन होड्या सागरावरी
तन किनारा शोधती, मन हे प्रेमा बुडले जरी
मोगरा तू, तूच चाफाा, स्‍वये भ्रमर होवू द्यायचे
पुन्‍हा घ्‍यायचे शस्‍त्र हातात आणि, भावनेलावाहू द्यायचे

तुझी नज़र तुझे कटाक्ष, दोन खळ्या त्‍या गालावरी
मदालसा जणु नृत्‍य करते, ह्दयाच्‍या तालावरी
सैरा-वैरा मनांस आता, असेच वाहू द्यायचे...
पुन्‍हा घ्‍यायचे शस्‍त्र हातात आणि, भावनेला वाहू द्यायचे

रेशमी तो स्‍पर्श तुझाा, आठवितो मम किती
असेल जरी हा चंद्र शीत, दाखवितो तम किती
चांदण्‍या रात्रीत नेत्र, असेच ओले होवू द्यायचे
पुन्‍हा घ्‍यायचे शस्‍त्र हातात आणि, भावनेला वाहू द्यायचे

तू बिलगता अशी अचानक, माझ्यात मी न राही मात्र
शताका नूं शतके ओसरावी, पण न सरावी ही एक रात्र
या मृगाच्‍या सरी साठी, स्‍वतःला चातक होवू द्यायचे
पुन्‍हा घ्‍यायचे शस्‍त्र हातात आणि, भावनेला वाहू द्यायचे
राहुल उज्‍जैनकर ‘’राहुल’’

लिहा ओळीवर कविता - भाग १२४ - पुन्हा घ्यायचे शस्त्र हातात आणि - या उपक्रमात माझा सहभाग Marathi Kavita - मराठी कविता समूह या गुप साठी

ऐसा अक्सर होता है


जब कभी कोई आईना टूटकर बिखरता है कहीं ।
तेरा छोड़कर जाना याद आता है, ऐसा अक्सर होता है ।।

साहिल पर जब रह रहकर मचलती है लहरें तनहा ।
मेरी पलकों के किनारे भी भीग जाते है,ऐसा अक्सर होता है ।

यूँ पतंगों को उलझाकर काट देना खेल नही अच्छा ।
अब तेरा लौटकर न आना अखरता है,ऐसा अक्सर होता है ।

जबतक शाख पे रहा खिलता और महकता रहा फूल ।
तेरे होने से ही रौशन था अब लगता है,ऐसा अक्सर होता है ।

शाम होते ही घिर जाते है तमाम रास्ते रौशनी से ।
तू आसपास है कही ये महसूस होता है,ऐसा अक्सर होता है ।
©® राहुल फ़राज़

Wednesday, January 14, 2015

आईस पाईस खेळण आता थांबवायला हवं

आईस पाईस खेळणं आता थांबवायला हवं
तुझं माझं भांडण अता थांबवायला हवं

हा संसार फक्‍त माझा नाही, हा संसार फक्‍त तुझा नाही
घरटं हे आपल्‍या दोघांच, सर्वच आपले कुणी दुजा नाही
मी पण आपल्‍यातले अता, सर्व गळायला हवं
तुझं माझं भांडण अता थांबवायला हवं

खुप फिरला मी माझ्या हौसे साठी
खुप फिरली तू तुझ्या हौसे साठी
संसाराची गाडी मात्र जागेवरच राहिली
एकाच दिशेने दोन्‍ही चाकं अता फिरायला हवं
तुझं माझं भांडण अता थांबवायला हवं

90 टक्‍के मार्क्‍स तर मुलं माझ्यावर गेलीये
कधी भांडली शाळेत, तर बापावर गेलीये
अहं च्‍या जाळ्यात पिलांना गुरुफटायचं नसतं
नाते विस्‍कटण्‍या आधी सावरायला हवं
तुझं माझं भांडण अता थांबवायला हवं
राहुल उज्‍जैनकर 'राहुल'

विविध रंग

मुझसे बेहतर कौन समझे फ़राज़ हाल इन पतंगो का ।
डोर अभी भी थामी है उसने,और कटा-कटा सा रहता है
उस मासूम को मेरी, इबादत का अंदाज़ नही मालूम ।
मैं नही उसकी यादों में पर,वो मेरी दुआओं में रहता है ।
©®राहुल फ़राज़

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ? इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ? तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम...