Friday, November 02, 2012

तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है ?

तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है
चश्‍में पुरनम से दिल का बस,लहू बरस जाना बाकी है

मेरे बुलाने पर तेरा दौड के आना याद आता है
उन यादों का इस दिलसे अभी,निकल जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है

शर्त है तुम्‍हारी तो मिलने से परदा करूंगा, मगर
बाहों में तेरे होने के एहसास से,उबर जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है

गैर के सपनें सजा लिये तुमनें,अब हाथों में अपनें
मेरे हाथों से मगर अरमानों का बिखर जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है

चमन से जुदा होकर फूलों की,उम्र लंबी नही होती
फ़राज़े जिस्‍म से तेरी धडकनों का निकल जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्‍बत का क्‍या हरजाना बाकी है
राहुल उज्जैनकर फ़राज़

तुम मेरी मोहब्‍बत को, समझ नहीं पायी
मेरे दर्द में तेरी आखें, बरस नहीं पायी
मै चिर भी देता ,पहाड़ों का सीना, मगर
शिरिन तुम इस फरहाद की, बन नही पायी
 राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़ 

7 comments:

  1. कल 03/11/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. आपका हार्दिक आभार यशवंत जी , सचमुच आपकी गुणग्राहकता को मेरा सादर नमन है

      आभार

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  2. सुन्दर कविता

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  3. अत्यंत भाव पूर्ण सुन्दर गजल ....हार्दिक शुभ कामनाएं !!!

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  4. बहुत भावपूर्ण ..
    सुंदर रचना

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  5. Replies
    1. धन्‍यवाद आपनें मेरे इस गरीबखानें मे पधार कर मुझे जो इज्‍जत बक्‍शी है
      ,

      आपको सादर नमन और वंदन है, मुझे आपके इन दो शब्‍दों से और बेहतर
      लिखने के लिये नया बल प्राप्‍त हुआ है.................................

      आभार

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