Wednesday, October 17, 2012

दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था


इतना मुझे सताऐंगे सोचा न था
दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था

उसकी चुड़ीयों से खनकता था घर-आंगन
वो,साज सारे तोड़ जाऐंगे सोचा न था

तिनका तिनका जोड़कर आशीयां बनाया था

यूं उजाडेंगे घौसले परिंदो के सोचा न था

मुझे याद है उन्‍हे बारीश की बूदे पसंद है
बरसात मेरी ऑंखो से करायेगे सोचा न था

ख्‍वॉबों में भी कभी उनसे बिछड़ना गवांरा न था
'फ़राज़' वो रकी़ब से दिल लगायेंगे सोचा न था
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'


7 comments:

  1. thanks a lot Yashwant Ji...............

    सादर आभार

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  2. मुझे याद है उन्‍हे बारीश की बूदे पसंद है
    बरसात मेरी ऑंखो से करायेगे सोचा न था


    Bhavuk kar deti rachna...

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  3. मुझे याद है उन्‍हे बारीश की बूदे पसंद है
    बरसात मेरी ऑंखो से करायेगे सोचा न था
    जानते हुए कि वो कुछ भी कर सकती है, तुम आंख से बरसात कर दोगे सोचा न था... बहुत अच्छे भाव... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

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  4. गहरे भाव लिए हुए एक लाजवाब रचना...बहुत खूब...|

    सादर नमन |

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  5. कभी कभी वो हो जाता है... जो सोचा ही ना हो....~जब दुख बँटाने वाले खुद दुख देकर आगे बढ़ जाते हैं...
    ~अच्छी प्रस्तुति !

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  6. भावनाओं की संवेदनशील अभिव्यक्ति...
    सुन्दर रचना.....

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  7. आप सभी की सराहनाओं को साधूवाद एवं सादर धन्‍यवाद



    आभार

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