Sunday, June 24, 2012

हम आजकल उनसे खफा हुए बैठे है

बिमारे दिल की जैसे दवा हुए बैठे है
हम आजकल उनसे खफा हुए बैठे है

ना रास्‍तों का पता,न मंजिल का
नां कारवां की तलाश,ना साहिल की
सोया नहीं मैं जाने कितनी सदियों से
आज याद आया,तो हिसाब लिये बैठे है
हम आजकल......

फिर वो रूठ जायेगी मेरे मनाने के बावजूद
फिर आंसू बहायेगी मेरे हसांने के बावजूद
मुझसे भी जज्‍ब होता नहीं ये आलम,वो आये तो
हम आज अपनी ऑखों में,सैलाब लिये बैठे है
हम आजकल......

मेरी रूह तक पहुंचे थे तुम,कभी ऑंखो के रास्‍ते
मुझपर ही खत्‍म होते थ्‍ो तेरी उम्‍मीदों के रास्‍ते
सोचता हूं सौंप दूं तुम्‍हे वापस रिश्‍तों के अवशेष
बेडियां जो पांवो में थी,हाथों में लिये बैठे है
हम आजकल ........

क्‍या खोया,क्‍या पाया और नहीं सोचा जाता
रिश्‍तों का यूं बिखरनां,और नहीं देखा जाता
'फ़राज़'इन रिसते जख्‍मों पर मरहम तो रख
कब से हम अपनीं आंखों में नमक लिये बैठे है
हम आजकल उनसे खफा हुए बैठे है..........

राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

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