Tuesday, April 30, 2013

तुम्हे वो सब याद भी है या नहीं

तुम तो भूल गयी
उतार कर मेरे प्यार की निशानी
और.......
मुझे मेरे ही मोबाईल में
कर लिया था, कैद
तस्वीर उतार कर.....
रजनी गंधा के फूलों का
वो गुलदस्ता....
छोड आया था
तुम्हारे घर के कोनें में.....
जहा गुथी थी उंगलिया
हमारी......
बारीश का वो दिन.....
अब भी याद है ....
उन फूलों की महक
आज भी ताजा मालूम देती है,
पता नहीं.....
तुम्हे वो सब याद भी है, या नहीं.......
राहुल उज्जैनकर फ़राज़

Sunday, April 07, 2013

इससे तो अच्‍छा बेफिक्र बे-सहारे थे



हम तो बेकार ही बैठे, तेरे सहारे थे
इससे तो अच्‍छा बेफिक्र बे-सहारे थे

कभी तो करोगे मुझे याद मेरी तरह
दिन-रात बस यही सोच के गुजारे थे

ईद का चांद कहां अपनीं किस्‍मत में
रोजे़ बस् तुम्‍हे देखकर ही तो उतारे थे

जब थामी थी मेरी उंगलीयां, उंगलीयों में
तब जानों दिल मेरे,उंगलीयों पे तुम्‍हारे थे

तुमनें तो निकाल फेंका था घर से, मगर
तब भी,बहते मेरे आंसू याद में तुम्‍हारे थे

अब जो करती हो तुम शरारत गैरों के साथ
अंदाज सारे यही, कभी मेरे साथ, तुम्‍हारे थे

रह जाओगे भटक  कर,  अकेले,  तन्‍हा जिस रोज
एहसास तब होगा,‘फ़ारज़’ सिर्फ और सिर्फ तुम्‍हारे थे
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

ये जो रंग लगाया करती हो


ये जो तुम गैरो में बैठकर, मुस्‍कुराया करती हो
नाहक  ही  तुम  अपनां,   हुनर  जाया  करती हो.....

है तमन्‍ना  मुझसे  मिलनें की,  तो  मेरी  अंजुमन में आ
ये क्‍यों हर शाम कबूतरों को, दाना खिलाया करती हो

नज़रों के लडाओं पेंच , अब तो  बहारों  के दिन है
ये  क्‍या  बच्‍चों  जैसी, तुम  पतंग उडाया करती हो

दिल में आना चाहो तो , दिल का दरवाजा भी खुला है
ये क्‍यों  खि‍डकियों  से तुम, तांका - झांका  करती हो 

हर बार गहरा - चटक होता है , जब भी तुम्‍हे देखा है
अपनें नाखूनों पर तुम ,  ये जो रंग लगाया करती हो

बाद  इसके  मुझपर  कोई , नशा फिर तारी नहीं होता
'फ़राज़' की गज़ल जब  तुम , तरन्‍नुम में गाया करती हो
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

Saturday, April 06, 2013

जख्‍म़े दिल फिर हरा हो रहा है, इन दिनों


जख्‍म़े दिल फिर हरा हो रहा है, इन दिनों
चल रहा है पतझड का मौसम, इन दिनों

सुना था के मिल जाते है, बिछडे हुए अक्‍सर फिर राहों पर
बांट में तकता रहा उम्र भर, जिनकी उसी दो राहे पर
अब, मुझे वो आवाज़ दे रहा है, इन दिनों..............
        जख्‍में दिल.......
बंदीशे थी मेरे प्‍यार की, उसे उडान भरनां था
सैयाद की दुनिया में उसे नया  रंग भरनां था
हो रहा है उसे परों का एहसास इन दिनों
        जख्‍में दिल.......
लग जाती थी सिने से जब बिजली चमकती थी
होती बहोत थी नाराज़ जब घर की छत  टपकती थी
हो रहा 'फ़राज़' उसे बूंदों का एहसास इन दिनों
        जख्‍में दिल.......
राहुल उज्जैनकर फ़राज़

काग़ज पर मेरा नाम लिखकर

काग़ज पर मेरा नाम लिखकर
फिर नाव बनाई किसने है
कौन रोया, है सहरा में, ये नाव....
बहाई, किसने है


हर इक लफ्ज, आबे कौसर में
खिलकर जैसे कमल हुआ
मुर्दा दिल में, इश्‍क की ये..
आग लगाई किसने है....
कौन रोया, है सहरा में, ये नाव....
बहाई, किसने है


हर कोई ठुकराता रहा
राह का पत्‍थर ही तो था
इस पत्‍थर पर फूलों की ये.....
बरसात कराई किसनें है....
कौन रोया, है सहरा में, ये नाव....
बहाई, किसने है...............

चाके जिगर जिसका हुआ हो
इश्‍क, वो फिर क्‍या करेगा
''फ़राज़े'' दिल पर अरमानों की
ये, सेज सजाई किसने है....
कौन रोया, है सहरा में, ये नाव....
बहाई, किसने है
काग़ज पर मेरा नाम लिखकर
फिर नाव बनाई किसने है
राहुल उज्जैनकर फ़राज़

ये वक्‍त ये दौर बेवफ़ा है


ये वक्‍त ये दौर बेवफ़ा है, तेरी तरह मेरी तरह
हाथ छुडा कर चल दिया, तेरी तरह मेरी तरह

मलाजे तलाश थी जिंदगी, फिरते रहे दरबदर
हरपल रूप बदलता रहा, तेरी तरह मेरी तरह
ये वक्‍त ये दौर बेवफ़ा है, तेरी तरह मेरी तरह.....

पास अपनें सब ही था मगर, जाने किसकी तलाश थी
हरपल क्‍यू मचलता रहा, तेरी तरह मेरी तरह
ये वक्‍त ये दौर बेवफ़ा है, तेरी तरह मेरी तरह.....

तेरे मेरे अजिब शौक नें, फूंक दिया घर ये फ़राज़
गैर भी हाथ सेंकने लगे, तेरी तरह मेरी तरह
ये वक्‍त ये दौर बेवफ़ा है, तेरी तरह मेरी तरह.....
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ? इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ? तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम...