क्या ये जरूरी है ?
मेरे ही बीज से बने वो
मेरे ही रूप रंग में ढले वो
क्या ये जरूरी है.....?
फिर हमारे रक्त संबंधों का क्या
सब मिथ्या है
कोई मोल नहीं इसका
फिर भी साथ रहना....
क्या ये जरूरी है.....?
हमारा कुनबा, हमारा खानदान
सिर्फ खोखले शब्द है
या किसी स्वार्थ की डोर से बंधे
जिने को मजबूर
क्या ये जरूरी है......?
मेरे बीज से ना होना
सब संबंधो का मिथ्या होना है
अलावा इसके
क्या अलग है हम ?
संवेदना, प्रेम, दुःख
अश्रुओं का खारापन
क्या अलग है ?
इन सबको नज़र अंदाज करना
क्या ये जरूरी है......?
क्या ये जरूरी है......?
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
मेरे ही बीज से बने वो
मेरे ही रूप रंग में ढले वो
क्या ये जरूरी है.....?
फिर हमारे रक्त संबंधों का क्या
सब मिथ्या है
कोई मोल नहीं इसका
फिर भी साथ रहना....
क्या ये जरूरी है.....?
हमारा कुनबा, हमारा खानदान
सिर्फ खोखले शब्द है
या किसी स्वार्थ की डोर से बंधे
जिने को मजबूर
क्या ये जरूरी है......?
मेरे बीज से ना होना
सब संबंधो का मिथ्या होना है
अलावा इसके
क्या अलग है हम ?
संवेदना, प्रेम, दुःख
अश्रुओं का खारापन
क्या अलग है ?
इन सबको नज़र अंदाज करना
क्या ये जरूरी है......?
क्या ये जरूरी है......?
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
No comments:
Post a Comment