Thursday, October 18, 2012

दिवान-ए-इश्‍क में उसनें नया हर्फ़ खिंचा है

मेरे दिवान-ए-इश्‍क में उसनें नया हर्फ़ खिंचा है
करता इश्‍क हूं या इबादत,आज मुझसे पुछा है

फिरता रहा चश्‍माए खिज्र की तलाश में दरबदर
पांव के छालों का सबब, आज मुझसे पुछा है

फ़ानूस बनके खड़ा रहा हर दौरे मुश्किल में
लगा दूं मरहम तेर हाथों पर,आज मुझसे पुछा है

फिकरों,तानों,लफ़जों के वो बस तीर चलाता रहा
ये रंग है या खूनें‍ जिगर,आज मुझसे पुछा है

चल पड़ा है थाम के वो गैर का हाथ 'फ़राज़'
इश्‍क में दोगे जान या मुझपर,आज मुझसे पुछा है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

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