Friday, October 26, 2012

तुम बढ़ गये हद से मगर,ये दर्द बढ़ता नहीं

जाने क्‍या कर दिया उसनें इशारा बादलों को
बरसात क्‍यूं ये मेरी ऑंखों से होने लगी है
नाज़ों से कहा था उसने अब मुकद्दर संवर जायेगा
हाथों से हाथ छुटा नहीं और वो रोनी लगी है

पहले पल पल करती थी याद मुझे हिचकियों से
अब तो ख्‍वॉबों से भी नदारत रहनें लगी है
पहले रहती थी दिल में,रूह में,सॉंसों मे फ़राज़
पता बदल गया शायद,अब जानें कहा रहनें लगी है

तेरी जफ़ा से बढ़ता है सुकूं मेरा,इश्‍क घटता नहीं
पॅमानें कर दिये खाली मगर,नशा ये चढ़ता नहीं
नशा कम है शराब में,या मेरी मोहब्‍बत में ज्‍यादा
तुम बढ़ गये हद से मगर, ये मेरा दर्द बढ़ता नहीं
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

6 comments:

  1. प्रेम की गहराई लिए
    भावमयी रचना..
    :-)

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  2. सुन्दर रचना

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  3. भावमयी सुन्दर रचना ..........

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  4. आप सभी को सादर धन्‍यवाद

    आभार

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  5. WO GAYE HAMARE RIHAISH SE KI SASON SE NAAM HATATA NAHI
    UMRA BHAR RAHEGA YE EHSAS KHALI KI UNKA EHTARAM HATATA NAHI
    TERI ZUDAI KO KYA NAAM DU KI DUSARA KOI AKS UBHARATA NAHI
    JAB JAB YADON KE WO SAYE UBHARE HAR SAYE PE TERA HI NAAM HAI KI KAMBAKHT HATATA NAHI.
    AAMEEN

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