Tuesday, October 02, 2012

बडा जि‍द्दी है कमबख्‍त इसे समझाया नही जाता


बडा जि‍द्दी है कमबख्‍त इसे समझाया नही जाता
उस संगदील को यारों हमसे मगर भुलाया नही जाता

फुर्सत ही नही मैं लाख पुकारू,बुलाउं या मनाउं उसको
उस खुशनसीब का मगर हमें बुलाना जाया नही जाता

सब तो ले गया वो मुझसे वादे,वफा,चैनो करार मेरा
लुटाकर दिल की अमानत कुछ और बचाया नही जाता

ईद होती है अपनी,जब उससे मुलाकात या बात होती है
ऐसे रूहानी मौसम में फिर मातम  मनाया नही जाता

खूने दिल चाहिये उसे सुर्ख लाल बने मेहंदी उसके हाथों की
किसी की आखरी तमन्‍ना को'फ़राज़'ठुकराया ही नही जाता
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

4 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  2. वाह...
    बेहतरीन गज़ल...
    दाद हाज़िर है!!

    सादर
    अनु

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  3. आप सभी को मेरे उत्‍साहवर्धन के लिये सादर धन्‍यवाद


    आभार

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