Tuesday, October 16, 2012

प्‍यार, वफ़ा, इश्‍क, मोहब्‍बत कुछ नहीं होता

प्‍यार, वफ़ा, इश्‍क, मोहब्‍बत कुछ नहीं होता
सौदा होता है जज्‍बा़तों का,और कुछ नहीं होता

वादा भी करते हैं वो ख्‍वॉबों में मिलेंगे
जागता रातभर रहता हूं,और कुछ नहीं होता

चाहा के मांग लूं एक बोसा उल्‍फत की निशानी
होठ थर‍थरा के रह जाते है,और कुछ नहीं होता

साथ थे तो वादे करते थे जिने और मरनें के
जिंदगी मुहाल होती है वादों से,और कुछ नहीं होता

खून ए दिल से रोज उसको ख़त लिखता है 'फ़राज़'
कलम की धार पैनी होती है,और कुछ नहीं होता
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

3 comments:

  1. सच में कुछ भी नहीं होता...
    वादे पे जब ऐतबार ही ना रहा तो....!!

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