Sunday, July 24, 2022

ज़र्फ था न हुनर कोई

ज़र्फ़ था न हुनर कोई  ,        .दीवाने जैसा 
मैं फिसल जाता,बहक जाता, जमाने जैसा 
ज़र्फ़=योग्यता/सामर्थ्य

हर तरफ धुंध थी, कोहरा था, बराबर मेरे
तेरी यादों का सिलसिला था, रुलाने जैसा 
ज़र्फ़ था न.....

किश्तियाँ छोड़ दी, दरिया की निगेहबानी में
कितना मासूम था वो बचपन तुम्हारे जैसा 
ज़र्फ़ था न.....….

दिल मिले थे जवाँ लेकिन, लकीरें न मिली
लो टूट गया मेरा दिल भी, खिलौने जैसा 
ज़र्फ़ था न.....

क्या करें सोज़ के, हासिल न हुआ कुछ भी 
अब बचा क्या है फ़राज़ उनको, बताने जैसा 
ज़र्फ़ था न हुनर कोई  ,        .दीवाने जैसा 
©®राहुल फ़राज़ 
सोज़=दुःख

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