आश्रम चार है जीवन के
जिसने सत्य ज्ञान ये पाया है
उसने फिर हर मोह को त्यागा
जीवन सार्थक कर पाया है
ये चार ऋण है जो तुम्हे निभाने है
तर्पण में पितृ सारे, तृप्त तुम्हे कराने है
माया के फेर में तेरी, काया घिस जानी है
जो भी पास है तेरे , बस उसे बांटता चल
साथ मे अन्तिम, शून्य ही जायेगा
बात यही समझानी है।
©®राहुल फ़राज़
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