हाथ मिलाए तो थे हमने
उंगलियां भी, गुंथी थी....
कुछ पल को ही सही...
फिर ,छुड़ा दिया तुमनें..
अपना हाथ..मुझसे और..
अपना दामन भी..
जाने कितना कुछ
टूट गया..... था
उस रोज..... उस एक पल में
घर के कोने में, पड़े वो
रजनीगंधा के फूल भी
मुरझा गए थे....मेरी ही तरह
और फिर खत्म होगई...
उनकी खुशबू....मेरे अरमानों की
तरह...उस एक पल में
...... जाने क्या था वो..
मेरा भोलापन या तुम्हारी
चालाकियां.......😢😢😢
©®राहुल फ़राज़
No comments:
Post a Comment