अब जान लिया मैंने, तेरे दिल में कहाँ बैठा हूँ
जहाँ से मुझे, मेरी आवाज न आये वहां बैठा हूँ
सराय समझ के आये ठहरे और निकल गए,अब
हर किसी के लिए, किवाड़ बन्द कर बैठा हूँ
हर बार सताया-रुलाया मगर न मानी कभी
ऐसी,ज़िंदगी से अब दो-दो हाथ कर बैठा हूँ
जो तहरीरों में रहे करीब, कभी करीब रहे नही
ऐसे लफ़्ज़ों से अब मैं बगवात कर बैठा हूँ ।
नज़रों से दूर होते ही देखा, नज़रें बदल जाती है
ऐसी हर नज़र से अब मैं, बड़ी दूर जा बैठा हूँ
फ़राज़ तू क्यों हर किसी से, उम्मीद लगा लेता है
मुझे देख, मै बड़ी उम्मीद से नाउम्मीद हुआ बैठा हूँ
©®राहुल फ़राज़
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