लोभ-लालच के शर्करा में लिपटा
क्या जीवन कभी समझ पाया है?
धूर्त है वह, जो भगवा चोला ओढ़े
खुद ही खुदमें भरमाया है
स्वार्थ में गर तुमने काया जला ली
दौलत सारी अपने सिरहाने लगा ली
अंतिम क्षण में , ये सबकुछ लेकिन
तेरे काम नही आने वाला
मर्म समझो जीवन का, क्योंकि
ये मनुष्य जीवन, फिर नही मिलने वाला।
©®राहुल फ़राज़
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