मेरे रास्तों में मुसीबतों का अंबार लगा दो तुम
ये रास्ता न बदला जाएगा अंगार लगा दो तुम
इक-इक कदम, बढ़ रहा हूँ मैं मंजिल की जानिब
तुम्हारी जितनी भी कूवत है,उतना जोर लगादो तुम
तेरी औकात से बढ़कर तो, मेरा रुतबा है ! नादान
कदमोँ तक न पँहुचोगे, जितनी छलांग लगादो तुम
दोजख के कीड़े हो, यूंही बिल-बिलाते, रेंगते ही रहोगे
मेरा नाखून न मैला होगा,जितना कीचड़ उछालदो तुम
छीनकर रोशनी गैर की, करोगे घर मे उजाला कब तक
उजाले ये धरे रह जाएंगे, जितनी मर्ज़ी दिये लगालो तुम
तेरे मन भटकने का इलाज बस इतना है अहमक
सुबह-ओ-शाम फ़राज़-ए-गली में फेरे लगादो तुम
©®राहुल फ़राज़
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