एक रात में ही रिश्तों के मंजर बदल गए हैं
नज़रों के अंदाज़,हाथों के खंज़र बदल गए है
वो दावा करते हैं, दौरे ए मुश्किल में साथ देंगे
हम मजबूर क्या हुए, उनके तेवर बदल गए हैं
जागते रहते थे, कभी साथ मेरे , मगर आज
हमें नींद क्या आयी, उनके ख्वाब बदल गए हैं
जानतां हूँ,वक़्ते आखिर मुझे तन्हा रह जाना है
वक़्त के साथ क्या बेवक़्त भी,अपनें बदल गए हैं
वादे पे ऐतबार के सिवा,तेरे हिस्से आया क्या फ़राज़
सख्त जान हो तुम,वर्ना इंतज़ार में लोग बदल गए है
©®राहुल फ़राज़
DT:२४/०७/२०२२
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