Wednesday, October 31, 2012
Tuesday, October 30, 2012
शर्माओंगी तो नहीं, तुमको अपनी दिवानी कह दूं
शर्माओंगी तो नहीं, तुमको अपनी दिवानी कह दूं
सितारों ने किया है मुकरर्र,अपनें वस्ल का दिन
अपनी मुलाकात को मैं , रूहानी कह दूं
देखता हूं तुमको तो रूह को सूकून ऑंखों को ठंडक आती है
क्या तुमको मैं , कश्मीर की पुरवा सुहानी कह दूं
देखो 'फ़राज़' पर फिर कोई इल्ज़ाम मत लगाना
तेरे रूखसार पे इक गज़ल, बोसों की जब़ानी कह दूं
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
Friday, October 26, 2012
दिखता है हर हुस्न वाला फ़राज़, दिले चाराःगर अपनां
आग जो वस्ल की दिल में है बुझाती नहीं
साथ रहकर भी हमनें गुजारी थी रातें तन्हा
अब रूठता मैं भी नही फ़राज़,मनाती वो भी नहीं
अजीब कश्मकश है दिल में
उसका ही नाम लिखता है फ़राज़ हाथों में
हाथों की लकीरों में जिसका नाम नहीं है
वस्ले इंतिजार की नाजूक डोर से बंधा है दिल
वो दिल,जिसे उसके बिना कहीं आराम नहीं है
इस दर्दे दिल की दवा हो तुम
लबों का टकराना गोश ए तन्हाई में,याद है नां
उठकर उसके पहलू से निकल जाना,याद है नां
थक गया है फ़राज़ अरमानों की लाश ढोत ढोते
तुमनें कहां था उसकी मैयत पे आओगी,याद है नां
तुम्हारे इंतिजार में.......................
जानें कैसा ये हमनें ग़में उल्फत, दिल को लगा लिया
दिखता है हर हुस्न वाला फ़राज़, दिले चाराःगर अपनां
ये वहम है मेरे दिल का..........................
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
तुम बढ़ गये हद से मगर,ये दर्द बढ़ता नहीं
जाने क्या कर दिया उसनें इशारा बादलों को
बरसात क्यूं ये मेरी ऑंखों से होने लगी है
नाज़ों से कहा था उसने अब मुकद्दर संवर जायेगा
हाथों से हाथ छुटा नहीं और वो रोनी लगी है
पहले पल पल करती थी याद मुझे हिचकियों से
अब तो ख्वॉबों से भी नदारत रहनें लगी है
पहले रहती थी दिल में,रूह में,सॉंसों मे फ़राज़
पता बदल गया शायद,अब जानें कहा रहनें लगी है
तेरी जफ़ा से बढ़ता है सुकूं मेरा,इश्क घटता नहीं
पॅमानें कर दिये खाली मगर,नशा ये चढ़ता नहीं
नशा कम है शराब में,या मेरी मोहब्बत में ज्यादा
तुम बढ़ गये हद से मगर, ये मेरा दर्द बढ़ता नहीं
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
बरसात क्यूं ये मेरी ऑंखों से होने लगी है
नाज़ों से कहा था उसने अब मुकद्दर संवर जायेगा
हाथों से हाथ छुटा नहीं और वो रोनी लगी है
पहले पल पल करती थी याद मुझे हिचकियों से
अब तो ख्वॉबों से भी नदारत रहनें लगी है
पहले रहती थी दिल में,रूह में,सॉंसों मे फ़राज़
पता बदल गया शायद,अब जानें कहा रहनें लगी है
तेरी जफ़ा से बढ़ता है सुकूं मेरा,इश्क घटता नहीं
पॅमानें कर दिये खाली मगर,नशा ये चढ़ता नहीं
नशा कम है शराब में,या मेरी मोहब्बत में ज्यादा
तुम बढ़ गये हद से मगर, ये मेरा दर्द बढ़ता नहीं
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
Wednesday, October 24, 2012
मेरे जुनूं मेरे इश्के इबादत से तुमको क्या
मेरे जुनूं मेरे इश्के इबादत से तुमको क्या
वस्ल1 का इंतिज़ार हमनें किया,तुमको क्या
इक या'लूल2 की मानिंद था प्यार तेरा
रंजे उल्फत3 में खसूर4 हुआ,तुमको क्या
लबेखुश्क5 थे ढुढते रहे इश्क का चश्मः6 तुझमें
खस्तःदिल7 तो हमारा हुआ,तुमको क्या
कोतहा-नज़र8 अपनी थी,तेरा फरेब न दिखा
बनगये कोकहन9 तेरे लिये,तुमको क्या
रफ़ाहत10 की चाहत में बीक जाओगे सोचा न था
रफीके सफर11 अपना माना था,तुमको क्या
तेर बादाऐ शौक़12 ने 'फ़राज़' को माइल13 बना दिया
वस्ले इंतिजार मे कटेगी उम्र सारी,तुमको क्या
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
1-मिलन ! 2-पानी का बुलबुला ! 3-प्रेम वेदना ! 4-दिवालिया, दिवाना
5-बहुत प्यासा ! 6-पानी का झरना ! 7-दरिद्र जिसका हाल खराब हो
8-दूर तक न देखनें वाला ! 9-पहाड चिरनें वाला, फरहाद के लिये बोलते है
10-सुख चैन, ऐशो आराम ! 11-यात्रा का साथी, हमसफर
12-प्रेम की मदिरा पीने वाला ! 13-आशिक, प्रेमी
वस्ल1 का इंतिज़ार हमनें किया,तुमको क्या
इक या'लूल2 की मानिंद था प्यार तेरा
रंजे उल्फत3 में खसूर4 हुआ,तुमको क्या
लबेखुश्क5 थे ढुढते रहे इश्क का चश्मः6 तुझमें
खस्तःदिल7 तो हमारा हुआ,तुमको क्या
कोतहा-नज़र8 अपनी थी,तेरा फरेब न दिखा
बनगये कोकहन9 तेरे लिये,तुमको क्या
रफ़ाहत10 की चाहत में बीक जाओगे सोचा न था
रफीके सफर11 अपना माना था,तुमको क्या
तेर बादाऐ शौक़12 ने 'फ़राज़' को माइल13 बना दिया
वस्ले इंतिजार मे कटेगी उम्र सारी,तुमको क्या
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
1-मिलन ! 2-पानी का बुलबुला ! 3-प्रेम वेदना ! 4-दिवालिया, दिवाना
5-बहुत प्यासा ! 6-पानी का झरना ! 7-दरिद्र जिसका हाल खराब हो
8-दूर तक न देखनें वाला ! 9-पहाड चिरनें वाला, फरहाद के लिये बोलते है
10-सुख चैन, ऐशो आराम ! 11-यात्रा का साथी, हमसफर
12-प्रेम की मदिरा पीने वाला ! 13-आशिक, प्रेमी
Saturday, October 20, 2012
Friday, October 19, 2012
मेरे होने का एहसास ही अलग है
मेरे वजूद का मेरे होने का एहसास ही अलग है
मेरी इबादत का मेरे इश्क का एहसास ही अलग है
तुमसे हिफाज़त ना हुई मेरी वफ़ा की मेरे जूनूं की
वर्ना,'फ़राज़'के साथ रहनें का एहसास ही अलग है.
लफ्जों के तीर ना खंज़र,ना होठों पे गाली होती है
इबादतों के होते है मौसम,लज्जतें निराली होती है
तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
मेरी इबादत का मेरे इश्क का एहसास ही अलग है
तुमसे हिफाज़त ना हुई मेरी वफ़ा की मेरे जूनूं की
वर्ना,'फ़राज़'के साथ रहनें का एहसास ही अलग है.
लफ्जों के तीर ना खंज़र,ना होठों पे गाली होती है
इबादतों के होते है मौसम,लज्जतें निराली होती है
तुमसे हुई ना कद्र 'फ़राज़' के जहानत की वर्ना
हम जिसके साथ होते है,बात निराली होती है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
प्रेम म्हणजे
♥ ♥ प्रेम म्हणजे ♥ ♥
५ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, मी हळूच रोज त्याच्या दप्तरातील चोकलेट काढणे पण तरी
त्याचे नेहमी तिथेच चोकलेट ठेवणे. ♥
१० वर्षाची मुलगी :-
५ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, मी हळूच रोज त्याच्या दप्तरातील चोकलेट काढणे पण तरी
त्याचे नेहमी तिथेच चोकलेट ठेवणे. ♥
१० वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, एकत्र अभ्यास करताना पेन्सिल घ्यायच्या बहाण्याने
मुद्दामहून त्याने माझ्या हाताला केलेला स्पर्श. ♥
१५ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, आम्ही शाळा बुडवल्या मुळे पकडले गेल्यावर
त्याने स्वताहा एकट्याने भोगलेली शिक्षा. ♥
१८ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, शाळेच्या निरोप समारंभात त्याने मारलेली मिठी आणि
खारट आश्रू पीत पुन्हा भेटण्याचीठेवलेली गोड अपेक्षा. ♥
२१ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, माझ्या कॉलेज ची सहल गेलेल्या ठिकाणी त्याने
त्याचे कॉलेज बुडवून अचानक दिलेली भेट. ♥
२६ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, गुढग्यावर बसून हातात गुलाबाचे फुल घेऊन
त्याने मला लग्ना साठी केलेली मागणी. ♥
३५ वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, मी दमले आहे हे बघून त्याने स्वताहा केलेला स्वयंपाक. ♥
६० वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, तो आजारीअसून, बरेच दिवस बेड वरच असूनसुद्धा मला हसवण्यासाठी त्याने केलेला विनोद. ♥
८० वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, त्याने शेवटचा श्वास घेताना पुढल्या जन्मात लवकरच भेटण्याचे दिलेले वचन..♥
(¯`•.•´¯) (¯`•.•´¯)___
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☆ º `•.¸.•´ º ☆
मुद्दामहून त्याने माझ्या हाताला केलेला स्पर्श. ♥
१५ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, आम्ही शाळा बुडवल्या मुळे पकडले गेल्यावर
त्याने स्वताहा एकट्याने भोगलेली शिक्षा. ♥
१८ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, शाळेच्या निरोप समारंभात त्याने मारलेली मिठी आणि
खारट आश्रू पीत पुन्हा भेटण्याचीठेवलेली गोड अपेक्षा. ♥
२१ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, माझ्या कॉलेज ची सहल गेलेल्या ठिकाणी त्याने
त्याचे कॉलेज बुडवून अचानक दिलेली भेट. ♥
२६ वर्षाची मुलगी :-
प्रेम म्हणजे, गुढग्यावर बसून हातात गुलाबाचे फुल घेऊन
त्याने मला लग्ना साठी केलेली मागणी. ♥
३५ वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, मी दमले आहे हे बघून त्याने स्वताहा केलेला स्वयंपाक. ♥
६० वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, तो आजारीअसून, बरेच दिवस बेड वरच असूनसुद्धा मला हसवण्यासाठी त्याने केलेला विनोद. ♥
८० वर्षाची स्त्री :-
प्रेम म्हणजे, त्याने शेवटचा श्वास घेताना पुढल्या जन्मात लवकरच भेटण्याचे दिलेले वचन..♥
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Thursday, October 18, 2012
अब ना करेंगे हम इश्क किसीसे, हार मान ली मैनें
हमपें ना कुर्बां करोगे ये जिस्मो-जां, ये बात मान ली मैंनें
अब ना करेंगे हम इश्क किसीसे, हार मान ली मैनें
सहरा में भी बहा दूं झरनां,फूल खिलादूं मै
तंगदील को सनम बनाकर, हार मान ली मैंने
है इतनी इबादत के बुत को भी,खुदा बना दूं मै
तेरे सजदे मे सर झुकाकर, हार मान ली मैनें
है आराईश बहोत 'फ़राज़' अगर बिकने पे आओ
दर्द के मोती समेटकर अपनें, हार मान ली मैंनें
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
अब ना करेंगे हम इश्क किसीसे, हार मान ली मैनें
सहरा में भी बहा दूं झरनां,फूल खिलादूं मै
तंगदील को सनम बनाकर, हार मान ली मैंने
है इतनी इबादत के बुत को भी,खुदा बना दूं मै
तेरे सजदे मे सर झुकाकर, हार मान ली मैनें
है आराईश बहोत 'फ़राज़' अगर बिकने पे आओ
दर्द के मोती समेटकर अपनें, हार मान ली मैंनें
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
दिवान-ए-इश्क में उसनें नया हर्फ़ खिंचा है
मेरे दिवान-ए-इश्क में उसनें नया हर्फ़ खिंचा है
करता इश्क हूं या इबादत,आज मुझसे पुछा है
फिरता रहा चश्माए खिज्र की तलाश में दरबदर
पांव के छालों का सबब, आज मुझसे पुछा है
फ़ानूस बनके खड़ा रहा हर दौरे मुश्किल में
लगा दूं मरहम तेर हाथों पर,आज मुझसे पुछा है
फिकरों,तानों,लफ़जों के वो बस तीर चलाता रहा
ये रंग है या खूनें जिगर,आज मुझसे पुछा है
चल पड़ा है थाम के वो गैर का हाथ 'फ़राज़'
इश्क में दोगे जान या मुझपर,आज मुझसे पुछा है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
करता इश्क हूं या इबादत,आज मुझसे पुछा है
फिरता रहा चश्माए खिज्र की तलाश में दरबदर
पांव के छालों का सबब, आज मुझसे पुछा है
फ़ानूस बनके खड़ा रहा हर दौरे मुश्किल में
लगा दूं मरहम तेर हाथों पर,आज मुझसे पुछा है
फिकरों,तानों,लफ़जों के वो बस तीर चलाता रहा
ये रंग है या खूनें जिगर,आज मुझसे पुछा है
चल पड़ा है थाम के वो गैर का हाथ 'फ़राज़'
इश्क में दोगे जान या मुझपर,आज मुझसे पुछा है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
Wednesday, October 17, 2012
दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था
इतना मुझे सताऐंगे सोचा न था
दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था
उसकी चुड़ीयों से खनकता था घर-आंगन
वो,साज सारे तोड़ जाऐंगे सोचा न था
दिल तोड़ कर जाऐंगे सोचा न था
उसकी चुड़ीयों से खनकता था घर-आंगन
वो,साज सारे तोड़ जाऐंगे सोचा न था
तिनका तिनका जोड़कर आशीयां बनाया था
यूं उजाडेंगे घौसले परिंदो के सोचा न था
मुझे याद है उन्हे बारीश की बूदे पसंद है
बरसात मेरी ऑंखो से करायेगे सोचा न था
ख्वॉबों में भी कभी उनसे बिछड़ना गवांरा न था
'फ़राज़' वो रकी़ब से दिल लगायेंगे सोचा न था
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
Tuesday, October 16, 2012
प्यार, वफ़ा, इश्क, मोहब्बत कुछ नहीं होता
प्यार, वफ़ा, इश्क, मोहब्बत कुछ नहीं होता
सौदा होता है जज्बा़तों का,और कुछ नहीं होता
वादा भी करते हैं वो ख्वॉबों में मिलेंगे
जागता रातभर रहता हूं,और कुछ नहीं होता
चाहा के मांग लूं एक बोसा उल्फत की निशानी
होठ थरथरा के रह जाते है,और कुछ नहीं होता
साथ थे तो वादे करते थे जिने और मरनें के
जिंदगी मुहाल होती है वादों से,और कुछ नहीं होता
खून ए दिल से रोज उसको ख़त लिखता है 'फ़राज़'
कलम की धार पैनी होती है,और कुछ नहीं होता
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
सौदा होता है जज्बा़तों का,और कुछ नहीं होता
वादा भी करते हैं वो ख्वॉबों में मिलेंगे
जागता रातभर रहता हूं,और कुछ नहीं होता
चाहा के मांग लूं एक बोसा उल्फत की निशानी
होठ थरथरा के रह जाते है,और कुछ नहीं होता
साथ थे तो वादे करते थे जिने और मरनें के
जिंदगी मुहाल होती है वादों से,और कुछ नहीं होता
खून ए दिल से रोज उसको ख़त लिखता है 'फ़राज़'
कलम की धार पैनी होती है,और कुछ नहीं होता
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
मै तुम्हे ढूंढने, स्वर्ग के द्वार तक..
मै तुम्हे ढूंढने, स्वर्ग के द्वार तक...!
रोज़ जाता रहा , रोज़ आता रहा...!!
तुम गज़ल बन गई, गीत में ढल गई...!
मंच से मै तुम्हे गुनगुनाता रहा...!!
(Base Line Pickup from Dr. Kumar Vishwas ji...)
तुम संवेदना शून्य बनकर मेरे भावों को छलती रही
मैं अपनें ही रक्त से तुम पर प्रेम गान लिखता रहा ..........
तुम्हारी प्रेम तृष्णा में, मैं याचक से चातक बना
स्वाती नक्षत्र सा प्रेम तुम्हारा, मैं बस बाट जोहता रहा........
मेरे ह्रदय के करूण कृंदन से हो न जाओ विचलित कही
श्ाब्दों से गीतों में परिवर्तित कर तम्हे, गुनगुनाता रहा...............
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़
Tuesday, October 02, 2012
बडा जिद्दी है कमबख्त इसे समझाया नही जाता
बडा जिद्दी है कमबख्त इसे समझाया नही जाता
उस संगदील को यारों हमसे मगर भुलाया नही जाता
फुर्सत ही नही मैं लाख पुकारू,बुलाउं या मनाउं उसको
उस खुशनसीब का मगर हमें बुलाना जाया नही जाता
सब तो ले गया वो मुझसे वादे,वफा,चैनो करार मेरा
लुटाकर दिल की अमानत कुछ और बचाया नही जाता
ईद होती है अपनी,जब उससे मुलाकात या बात होती है
ऐसे रूहानी मौसम में फिर मातम मनाया नही जाता
खूने दिल चाहिये उसे सुर्ख लाल बने मेहंदी उसके हाथों की
किसी की आखरी तमन्ना को'फ़राज़'ठुकराया ही नही जाता
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
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प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?
प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ? इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ? तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम...
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लाल सुर्ख है उसके पांव की मेहंदी,जरा देख तो लूं क्या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं मद्दतों मेरे पहलू में रहा ...