Tuesday, November 25, 2014

गैजेट्स कविता (आधुनिक कविता)

वो रोज छत की मुंडेर से शिकार करती है ।
अपनी नज़रों को, तीर की तरह इस्तेमाल करती है ।
जो भी डूबा उसकी आँखों में, फिर उबर न पाया ।
अपनी आँखों को, समंदर की तरह इस्तेमाल करती है ।

आज के दौर में तो , जुदाई भी जुदाई नही लगती ।
sms को भी ख़त की तरह, इस्तेमाल करती है ।
दूरियाँ मीलों की भी हो ,तो कम है उसके लिए ।
रूबरू मुझसे होने को, स्काइप का इस्तेमाल करती है ।

उसकी हर अदा में भी इक नशा है, फ़राज़
अपनें लबों को, जाम की तरह इस्तेमाल करती है ।
जहां भी जाऊ , उसे हर पल की खबर रहती है ।
मुझे ट्रैक करने वो Gps का इस्तेमाल करती है ।
©®राहुल फ़राज़

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