हम तो बेकार ही
बैठे, तेरे सहारे थे
इससे तो अच्छा बेफिक्र
बे-सहारे थे
कभी तो करोगे मुझे
याद मेरी तरह
दिन-रात बस यही सोच
के गुजारे थे
ईद का चांद कहां
अपनीं किस्मत में
रोजे़ बस् तुम्हे
देखकर ही तो उतारे थे
जब थामी थी मेरी उंगलीयां,
उंगलीयों में
तब जानों दिल मेरे,उंगलीयों
पे तुम्हारे थे
तुमनें तो निकाल
फेंका था घर से, मगर
तब भी,बहते मेरे
आंसू याद में तुम्हारे थे
अब जो करती हो तुम
शरारत गैरों के साथ
अंदाज सारे यही, कभी
मेरे साथ, तुम्हारे थे
रह जाओगे भटक कर, अकेले,
तन्हा जिस रोज
एहसास तब होगा,‘फ़ारज़’
सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे थे
राहुल उज्जैनकर
फ़राज़
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