अजीब सा दर्द दे गया कोई
मुश्किलें बड़ी सर्द दे गया कोई
जीने की ख्वाहिश कम हुई जाती है
हौसला मगर सख्त दे गया कोई
मैं तबस्सुम पे यकीं रखतां था मगर
जाने क्यों मिरे होंठ सी गया कोई
शर्मसार हो गई, आज फिर दुनिया
भरोसे का आज फिर, कत्ल कर गया कोई
रंगों में बंट के रह गया मज़हब 'फ़राज़'
जहन में ये कैसा ज़हर घोल गया कोई
©®राहुल फ़राज़
Dt: 25 April 2018
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