जब कभी कोई आईना टूटकर बिखरता है कहीं ।
तेरा छोड़कर जाना याद आता है, ऐसा अक्सर होता है ।।
साहिल पर जब रह रहकर मचलती है लहरें तनहा ।
मेरी पलकों के किनारे भी भीग जाते है,ऐसा अक्सर होता है ।
यूँ पतंगों को उलझाकर काट देना खेल नही अच्छा ।
अब तेरा लौटकर न आना अखरता है,ऐसा अक्सर होता है ।
जबतक शाख पे रहा खिलता और महकता रहा फूल ।
तेरे होने से ही रौशन था अब लगता है,ऐसा अक्सर होता है ।
शाम होते ही घिर जाते है तमाम रास्ते रौशनी से ।
तू आसपास है कही ये महसूस होता है,ऐसा अक्सर होता है ।
©® राहुल फ़राज़
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