चॉंद मेरी छत पर जब ठहर जाता
है कभी
तेरी यादों का सिल सिला चल पडता है तभी
कुछ आधे, कुछ पुरे , कुछ टुटे कुछ रूठे से
तेरी यादों का सिल सिला चल पडता है तभी
कुछ आधे, कुछ पुरे , कुछ टुटे कुछ रूठे से
चॉंद मेरी छत पर------
तेरे दिये जख़्मों पर मेरी
पलके मरहम लगाने को
सावन मेरी ऑंखों से , फिर बरसा देती है तभी
सावन मेरी ऑंखों से , फिर बरसा देती है तभी
चॉंद मेरी छत पर------
फ़राज़ इक यही वादा वो बडी
शिद्दत से निभाता है
यादों में उसको जब बुलाउ आजाता है तभी
चॉंद मेरी छत पर------
© राहुल उज्जैनकर फ़राज़
यादों में उसको जब बुलाउ आजाता है तभी
चॉंद मेरी छत पर------
© राहुल उज्जैनकर फ़राज़
वाह...वाह....
ReplyDeleteबहुत खूब...
Dhaynwaad punam ji....
ReplyDeleteसादर