Wednesday, December 18, 2019

चॉंद मेरी छत पर


चॉंद मेरी छत पर जब ठहर जाता है कभी
तेरी यादों का सिल सिला चल पडता है तभी

कुछ आधे, कुछ पुरे , कुछ टुटे कुछ रूठे से
अरमां सारे एक कतार में, खडे हो जाते है सभी


चॉंद मेरी छत पर------  



तेरे दिये जख्‍़मों पर मेरी पलके मरहम लगाने को
सावन मेरी ऑंखों से , फिर बरसा देती है तभी
चॉंद मेरी छत पर------

फ़राज़ इक यही वादा वो बडी शिद्दत से निभाता है
यादों में उसको जब बुलाउ आजाता है तभी
चॉंद मेरी छत पर------
© राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

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