Thursday, January 24, 2013

आजाओ एक दर्द का जाम पिला दो मुझको


आजाओ एक दर्द का जाम पिला दो मुझको
दर्दे मोहब्‍बत का कोई इनाम दिला दो मुझको

कांच से नाजुक सपनें तेरी राहों में बिछा दूं
ये लो पत्‍‍थर, अपनां निशाना दिखा दो  मुझको
आजाओं एक दर्द का जाम पिला दो मुझको

अंधेरों से बहोत डरता है,मेरा मासूम सा दिल
ये लो घरौंदा मेरा,थोडी आग जला दो मुझको
आजाओं एक दर्द का जाम पिला दो मुझको

देखुं कितना जज्‍ब है इन रिसते हुए जख्‍मों में
ये लो थोडा  इन पर, नमक लगा दो मुझको
आजाओ एक दर्द का जाम पिला दो मुझको

सांसों की डोर थमी है फ़राज़, लफ्ज लफ्ज पिरोनें से
छिन लों ये कलम मेरे हाथों से खबर बना दो मुझको
आजाओ एक दर्द का जाम पिला दो मुझको
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

6 comments:

  1. सादर आभार यशवंत जी ..........
    बहोत दिनों के बाद आज यह शुभ दिन आया है.............


    आभार
    राहुल

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  2. बहुत सुन्दर ...भावपूर्ण अभिव्यक्ति

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  3. खुबसूरत रचना

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  4. भावो का सुन्दर समायोजन......

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  5. आप सभी का हार्दिक आभार धन्‍यवाद


    सादर
    राहुल

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