Friday, January 18, 2013

मालूम तो है, हम तेरी बातों में आजाते है

तुम क्‍यों देनें लगे हो फरेब मुझे वादों के
मालूम तो है, हम तेरी बातों में आजाते है

वो जो इक पल को दिखा जाते हो हुस्‍न अपनां
कितनें सारे  ख्‍वॉब फिर, इन ऑंखों में आजाते है
तुम क्‍यों देनें लगे हो फरेब मुझे वादों के
मालूम तो है, हम तेरी बातों में आजाते है

इक कतरा तेरी ऑंखों से जो निकल गया कभी
जानें कितनें सैलाब फिर मेरी पलको पे आजाते है
तुम क्‍यों देनें लगे हो फरेब मुझे वादों के
मालूम तो है, हम तेरी बातों में आजाते है

इस कदर हावी है फ़राज़, तमन्‍ना तुझे पानें की
सुबहो शाम आप मेरी दुआओं में आजाते है
तुम क्‍यों देनें लगे हो फरेब मुझे वादों के
मालूम तो है, हम तेरी बातों में आजाते है
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

3 comments:

  1. बहुत खूब ... ये उनकी अदाएं हैं या इश्क ...
    लाजवाब शेर ...

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  2. धन्‍यवाद
    सरस जी एवं नासवा जी................

    आपकी सराहना के बहुमूल्‍य मोती से मेरा मनोबल सदा ही बढता आया है


    आभार

    राहुल.............

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