तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्बत का क्या हरजाना बाकी है
चश्में पुरनम से दिल का बस,लहू बरस जाना बाकी है
मेरे बुलाने पर तेरा दौड के आना याद आता है
उन यादों का इस दिलसे अभी,निकल जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्बत का क्या हरजाना बाकी है
शर्त है तुम्हारी तो मिलने से परदा करूंगा, मगर
बाहों में तेरे होने के एहसास से,उबर जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्बत का क्या हरजाना बाकी है
गैर के सपनें सजा लिये तुमनें,अब हाथों में अपनें
मेरे हाथों से मगर अरमानों का बिखर जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्बत का क्या हरजाना बाकी है
चमन से जुदा होकर फूलों की,उम्र लंबी नही होती
फ़राज़े जिस्म से तेरी धडकनों का निकल जाना बाकी है
तुम ही कहो सज़ाऐ मोहब्बत का क्या हरजाना बाकी है
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
तुम मेरी मोहब्बत को, समझ नहीं पायी
मेरे दर्द में तेरी आखें, बरस नहीं पायी
मै चिर भी देता ,पहाड़ों का सीना, मगर
शिरिन तुम इस फरहाद की, बन नही पायी
राहुल उज्जैनकर फ़राज़