Monday, June 28, 2010

आज विचलित है तुम्हारा प्रेम प्रिये

आज विचलित है तुम्हारा प्रेम प्रिये, कल इसका,
परिणाम ना जाने क्या होगा ?



बचपन का हम प्रेम संभाले, जिये वर्षों एकाकी से !
प्रेम अपना अभिव्यक्त मगर, कर ना पाये बेबाकी से !

प्रसन्न होगी जब प्रेम देवी, अर्पण करूंगा उसपर तनमन !
हर एक वचन निभाने का, था प्रण किया मन ही मन !
क्युं साशंकित है देवि वो, मेरे विशवास का जाने क्या होग ? !!
आज विचलित है तुम्हारा प्रेम प्रिये, कल इसका,
परिणाम ना जाने क्या होगा ?

कितने तुफ़ान आये गये, ये हिसाब लगान मुश्किल है !
किसने कितनां दर्द सहा ये, तय कर पाना मुश्किल है !
साथी बनकर शाश्वत प्रेम की, ये नाव खेते जाना है !
इक दुजे की पतवार बनकर, ये जिवन पार लगाना है !
छोडोगी पतवार अगर, मझधार में जाने क्या होगा ? !
आज विचलित है तुम्हारा प्रेम प्रिये, कल इसका,
परिणाम ना जाने क्या होगा ?

भविष्य का हम सपनां देखे, आने वाले वर्षों का !
करें स्वागत सच्चे मन से, आने वाले हर्षों का !
अतित की बातें करके, क्युं दामन भीगोनां चाहती हो !
वर्तमान भी एक माया है, क्युं दुःखी होनां चाहती हो !
दीपक जलानां भूलोगी तो, तमस का जाने क्या होगा ?!
आज विचलित है तुम्हारा प्रेम प्रिये, कल इसका,
परिणाम ना जाने क्या होगा ?

राहुल उज्जैनकर "फ़राज़

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