क्या कयामत लगती
है वो, मेरी नज़र से देखनां तुम
चांद का यूं जमी
पर चलना, मेरी नज़र से देखनां तुम
शहजादी है वो
गुलोंकी, बहारे चमन है, इक कली का
यूं, फूल बन जाना,
मेरी नज़र से देखनां तुम.......
शोलाऐ हुस्न है
वो , मगर..... .हरपल इश्क बरसाती है
सुबहो-शाम का कलमा
पढना,मेरी नज़र से देख्नां तुम
जिसनें भी उससे नज़र
मिलाई, ज़ख्में दिल हुआ है वो
नज़रों से उसका
ख़ंजर चलाना,मेरी नज़र से देखनां तुम
बेशकिमती है ये अश्क
फ़राज़, इसे जाया नां करनां
सीप से यूं मोती
बरसना, मेरी नज़र से देखनां तुम
मेरे पहलू में आकर
भी यारों, वो मेरी ना बन सकी
लकीरों का हाथों से
मिट जाना, मेरी नज़र से देखना तुम
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
No comments:
Post a Comment