याद है....
हम तुम अक्सर
किनारों पर मिला करते थे
अपनें रिश्तों के, पैबंद
वहीं सिला करते थे
याद है.....
तुम्हे हमेशा उंचे टिले पर
बैठना पसंद था
और मुझे........
नीचे बैठकर तुम्हारे पायल को,
निहारते रहनां....
खो जाता था उस
छम-छम के संगीत में
गूंथ लेता था, तुमको, अपनें
अनुराग के गीत में
मगर.....
इक रोज, तुमनें........
उंचा ओहदा पा लिया
तुम शहर चली गयी
मैं बस उम्मीदों के घौसलें,
सम्हालता रहा....
पता ही नहीं चला, कब तुम...
उम्मीदों के घौसलें से निकलकर,
एक सपनां बन गयी
हम तुम जो अक्सर..
किनारों पर मिला करते थे... जानें कब
दो किनारे बन गये.........
दो किनारे बन गये.........
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
हम तुम अक्सर
किनारों पर मिला करते थे
अपनें रिश्तों के, पैबंद
वहीं सिला करते थे
याद है.....
तुम्हे हमेशा उंचे टिले पर
बैठना पसंद था
और मुझे........
नीचे बैठकर तुम्हारे पायल को,
निहारते रहनां....
खो जाता था उस
छम-छम के संगीत में
गूंथ लेता था, तुमको, अपनें
अनुराग के गीत में
मगर.....
इक रोज, तुमनें........
उंचा ओहदा पा लिया
तुम शहर चली गयी
मैं बस उम्मीदों के घौसलें,
सम्हालता रहा....
पता ही नहीं चला, कब तुम...
उम्मीदों के घौसलें से निकलकर,
एक सपनां बन गयी
हम तुम जो अक्सर..
किनारों पर मिला करते थे... जानें कब
दो किनारे बन गये.........
दो किनारे बन गये.........
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
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