आजाना किसी रोज,
मज़ारे इश्क पर , वक्त मिले तो
बडी मुद्दत से
तम्मना है, तुझे देखने की
वक्त मिले तो
तेरी खुशी के
लिये , ख़ाक हुआ हूं, इश्के इंम्तिहान में
इक दिया तो रौशन
कर दिया करो, वक्त मिले तो
अब कहां उजाले
तरे नूर के , कहां वो संदल सा
बदन
दामन ही चढा जाना
अपनां, किसी रोज,वक्त मिले तो
रोज जिसे दाना
चुगाकर, भेज देती हो तुम, मेरे पास
उसे भी कर दो,
आज़ाद किसी रोज, वक्त मिले तो
तुझ से बढ़कर तो,
अब तेरे, आशिक पर प्यार आता है ‘फ़राज़’
रोज मिन्नतें
करता है,तेरे दिल से निकल जाउं,‘वक्त मिले तो’
राहुल उज्जैनकर
फ़राज़
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