तेरी दुनिया,
मेरी दुनियां से, अब अलग कहां है
मैं गर जागता हूं
रातों को,तो सोती तू भी कहां है
फासले इतनें भी
नहीं, तेरे मेरे दरमियां,के लौट ना सकें
घुट के रह जाती
है सदायें मेरी,आवाज़ देती तू भी कहां है
तेरी दुनिया,
मेरी दुनियां से, अब अलग कहां है
मैं गर जागता हूं
रातों को, तो सोती तू भी कहां है
वस्ले इंतिजार
में,ग़मों को नासूर बना के रख्खा है
क्यो ना कुरेदूं
जख़्मों को,मरहम तू भी लगाती कहां है
तेरी दुनिया ,
मेरी दुनियां से , अब अलग कहां है
मैं गर जागता हूं
रातों को , तो सोती तू भी कहां है
सैयाद का क़फ़स ही
है अब, लैला का नसीब़ फ़राज़
पर कतरे हो जिसके,
वो चिडिया फिर उडती कहां है
तेरी दुनिया ,
मेरी दुनियां से , अब अलग कहां है
मैं गर जागता हूं
रातों को , तो सोती तू भी कहां है
राहुल उज्जैनकर
फ़राज़
बहोत खूब राहुलजी
ReplyDeleteतहे दिल से आपका धन्यवाद 'सरस' जी... आपकी सराहना से सच में बहोत संबल मिलता है
Deleteआभार
बहोत खुब ।
ReplyDeleteथैंक्स दादा
Deleteतुम्हीं कमेंट केला म्हणजे यात काही तरी विशेष असरणारच
आभार