Sunday, April 08, 2012

कल तक गुजरें उस मंजर के, खयाल अब भी ताजा है

कल तक गुजरें उस मंजर के, खयाल अब भी ताजा है
वो आलम अब भी जाता है, वो सवाल अब भी ताजा है

गुजरा है कोई शायद तूफान इस साहिल से
चेहरे पर अश्‍कों के ये निशान अब भी ताजा हैं

मरनें से पहले वो जरूर महबूब से मिला होगा
गली में उसके कदमों के ये निशान अब भी ताजा है

अभी-अभी तोडा है शायद, दम उस शक्‍स नें
बिस्‍तरों पर सिलवटों के ये निशान अब भी ताजा है

रात ढले किसीने उसकी कब्र पर चिराग जलाया होगा
दिन चढे चिराग बुझनें के ये निशान अब भी ताजा है

फिर कोई 'फराज', अपनें वक्‍त से पहलें मारा गया
उंगलियों पर गिनी उम्र का हिसाब अब भी ताजा है

राहुल उज्‍जैनकर ''फराज''

A Tribute to My Dearest Younger  Brother [Late "Mr. Ratnesh Ujjainkar" ]

2 comments:

  1. nice words, sir ur such a great writter

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    1. जर्रा नवाजी का शुक्रिया !
      आपनें सराहा ................. आभार

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