मोती बनकर, मेरी आँख से बहता क्यूं नहीं
साँस रुकती है, मगर, दम निकलता क्यूं नहीं
वो लगाते है मेरी, हिज्र की रातों का हिसाब
मेरे हिस्से में कोई ग़म, निकलता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर......
जब जलाते है मुझे, किसी शम्मा की तरह
मैं गर, मोम हूं, तो पिघलता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर...
माना के, मैं बेवफा हूं, मगर ये बता मुझको
दिल-ए-आईने में अक्स दूसरा उभरता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर...
टूटे तारे को देखकर, सबने मांग लिया कया क्या
मेरे हिस्से का फ़राज़,कोई तारा टूटता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर...
©®राहुल फ़राज़
साँस रुकती है, मगर, दम निकलता क्यूं नहीं
वो लगाते है मेरी, हिज्र की रातों का हिसाब
मेरे हिस्से में कोई ग़म, निकलता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर......
जब जलाते है मुझे, किसी शम्मा की तरह
मैं गर, मोम हूं, तो पिघलता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर...
माना के, मैं बेवफा हूं, मगर ये बता मुझको
दिल-ए-आईने में अक्स दूसरा उभरता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर...
टूटे तारे को देखकर, सबने मांग लिया कया क्या
मेरे हिस्से का फ़राज़,कोई तारा टूटता क्यूं नहीं
साँस रूकती है मगर...
©®राहुल फ़राज़
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