Thursday, March 29, 2012
Wednesday, March 28, 2012
वो मोहब्बत किसकी थी ?
उस रोज अचानक मेरे दिल में आहट आयी किसकी थी
इस सुनें दिल में बना गयी मुकाम वो मोहब्बत किसकी थी
ऑंखों में नींद थी ना दिल को करार, ऐसी हालत मेरी थी
कर गयी जो मेरी हालत दिवानों सी, वो मोहब्बत किसकी थी
देखते ही मयखानें झुम उठे ऐसी ऑंखे किसकी थी
दे गयी जो मुझे सपनें हसीन, वो मोहब्बत किसकी थी
यूं तो ''फराज'' दिवाना नही किसी की मोहब्बत का मगर
एहसास दिला गयी अपनें वजूद का,वो मोहब्बत किसकी थी
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
Tuesday, March 27, 2012
तुम हॅंस दिये
हमनें अपनां हाल-ए-मोहब्बत तुम्हे सुनाया था जब
तब, सुनकर मेरा दर्द-ए-दिल तुम हॅंस दिये
मानां के बहाना था मेरा शेर सुनानां तुमको मगर
सुनकर मेरे शेरों में अपनां नाम तुम हॅंस दिये
वादा किया था तुमनें साथ चलनें का जरा दूर तक
तब देकर मेरे हाथों में अपनां हाथ तुम हॅंस दिये
हो रहा था चर्चा तुम्हारें हुस्न का सारी महफिल में
कहते ही मेरे तुमको चॉंद, तुम हॅंस दिये
कल नजर टकराई थी तुमसे जो छतपर, तब
देख मेरा लडखडानां , तुम हॅंस दिये
हॅसनें का शौक हमें भी है, पर तुमसा हॅंसनां नही आया
दिवानों से सुनकर पैगाम मेरी मौत का, तुम हॅंस दिये
द्वाराः राहुल उज्जैनकर ''फराज'' आज पुछते हो हमसे के , परेशां क्युं हो
आज पुछते हो हमसे के , परेशां क्युं हो
सौगाते गमों की देने वाले तुम ही तो हो
मत छिडको तुम नमक उेरे जख्मों पर
साभी मेरा छिननें वाले तुम ही तो हो
हर रात जागता हूं , करवाटें बदलता हूं
मेरे ख्वॉबों सुनहरे छिननें वाले तुम ही तो हो
अधेरों से प्यार , अपनें से नफरत हो गयी है
उजाले जिंदगी के छिननें वाले तुम ही तो हो
जिंदगी सूनी राहों का सफर हो गयी है ''फराज''
नाकाम मुहब्बत को करनें वाले तुम ही तो हो
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
तुम गर आस्तिन में सांप पालते तो अच्छा होता
अंगारों से हाथ मिलाते तो अच्छा होता
बेवफाओं से चाहते हो, वफा की हिफाजत
खंजरों से रखते हो नां चुभने की चाहत
खुदा के नाम पर तो बहा दी दूध की नदीयां
दूध ये तुम इन सांपों को पिलाते तो अच्छा होता
आस्तिन में गर सांप पालते तो अच्छा होता
दिल में मेरे ये जख्म नहीं बेवफाओं के छाले है
क्यों की हमनें ही अपनी आस्तिन में सांप पाले है
वफा, इमान , वादे और मोहब्बत ये क्या जानें,इनके लिये तो
भगतसिंह,चंद्रशेकखर ,तिलक,राजगरू गद्दार सारे है
वतन को बेच खा सकते है 'फराज', तो इस पर मरें क्यूं ?
हम ही पागल है जो हमनें "लोकपाल" के ख्वॉब पाले है
सच है यारों के हमनें ही अपनीं आस्तिन में सांप पाले हैं ......
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
अंगारों से हाथ मिलाते तो अच्छा होता
बेवफाओं से चाहते हो, वफा की हिफाजत
खंजरों से रखते हो नां चुभने की चाहत
खुदा के नाम पर तो बहा दी दूध की नदीयां
दूध ये तुम इन सांपों को पिलाते तो अच्छा होता
आस्तिन में गर सांप पालते तो अच्छा होता
दिल में मेरे ये जख्म नहीं बेवफाओं के छाले है
क्यों की हमनें ही अपनी आस्तिन में सांप पाले है
वफा, इमान , वादे और मोहब्बत ये क्या जानें,इनके लिये तो
भगतसिंह,चंद्रशेकखर ,तिलक,राजगरू गद्दार सारे है
वतन को बेच खा सकते है 'फराज', तो इस पर मरें क्यूं ?
हम ही पागल है जो हमनें "लोकपाल" के ख्वॉब पाले है
सच है यारों के हमनें ही अपनीं आस्तिन में सांप पाले हैं ......
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
Sunday, March 25, 2012
अवशेश बनकर भी अब तक इस धरा पर शेष हु.
आपने प्रियतम के गजरे मे उल्झा सुगन्धित केश हूं
मरिचिका मे प्रेम खोजता, मृग मे विशेष हूं
प्रेम युध्द मे पराजित अब खन्डहर बना हुआ.
अवशेष बनकर भी अब तक इस धरा पर शेष हूं.........
तुम्हारे अकल्पित प्रेम गीतो का मै संगीत विशेष हूं
भवरे का गुन्जन,मन का क्रृन्दन,अश्रुपूर्ण नेत्रो का अन्जन शेष हूं
अपनी स्मृतियों से भले कर दिया विस्मृत तुमनें, मगर..
उन गीतो की, स्मृतियो मे अब भी मै विशेष हूं ....
प्रेम में विद्रोह की,बिछोह में क्रोध की, गून्ज मै विशेष हूं
जात-पात धर्म की लंका लांघता,वानर मै विशेष हूं
युद्ध मे पराजित , रक्त्त से रंजित,आहत और मृत प्रायाः
हर अपने पराये के मन मे उभरा,श्याम वर्ण द्वेष हूं....
राहुल उज्जैनकर ''फ़राज़''
मरिचिका मे प्रेम खोजता, मृग मे विशेष हूं
प्रेम युध्द मे पराजित अब खन्डहर बना हुआ.
अवशेष बनकर भी अब तक इस धरा पर शेष हूं.........
तुम्हारे अकल्पित प्रेम गीतो का मै संगीत विशेष हूं
भवरे का गुन्जन,मन का क्रृन्दन,अश्रुपूर्ण नेत्रो का अन्जन शेष हूं
अपनी स्मृतियों से भले कर दिया विस्मृत तुमनें, मगर..
उन गीतो की, स्मृतियो मे अब भी मै विशेष हूं ....
प्रेम में विद्रोह की,बिछोह में क्रोध की, गून्ज मै विशेष हूं
जात-पात धर्म की लंका लांघता,वानर मै विशेष हूं
युद्ध मे पराजित , रक्त्त से रंजित,आहत और मृत प्रायाः
हर अपने पराये के मन मे उभरा,श्याम वर्ण द्वेष हूं....
राहुल उज्जैनकर ''फ़राज़''
Friday, March 02, 2012
हे सगळं विसरतां येईल कां ?
तुझे ते गोड हासणे
तो नखरा, ते धावपळी चे खेळ
तुझे ते हसतां-हसतां रडणे
मग माझे हात
तुझया डोळया पुढे येताच
तुझे ते गोड हासणें
त्या उंच आकाशाच्या गोष्टी
ते समुद्राकाठी घालवलेले
कित्येक तास
त्या मावळत्या सूर्या कडे
एकटक पाहत राहणे
अगं, हे सगळं विसरतां येईल कां ?
आज आपल्याला
वेगळे होवून
कित्येक वर्षे झाली आहे
पण ................
अजुनही असेच वाटते
की
जशी कालचीच गोष्ट होती
तू धावत आलीस
अन्
आपण समुद्राकाठी गेलो
तू रडत होतीस
कारण .........
वडिलांची बदली झाली होती
तुझया
आज शेवटची भेट होती
तुझी
माझी
असाही दिवस येईल
कधी कल्पना सुध्दा केली नव्हती
कधी कल्पना सुध्दा केली नव्हती
आपल्या प्रेमाच्या पाखरांना
पंख सुध्दा फुटले नव्हते
पण .......
नियती पुढे कोणाची चालली आहे
आज ...............
तुझा लग्न समारंभ
सुखाने पार पडलां असेल
शेवटदा तुला पहायचं होतं
पण ...............
धाडस झालं नाही माझं
अगं
मी मनाचा ऐवढा मोठा नाहीये
मला, त्या पूर्ण न झालेल्या स्वप्नांचा
आज ही, हेवा वाटतोयं
हे सगळं विसरतां येईल कां ?
अगं, हे सगळं विसरतां येईल कां ?
अगं, हे सगळं विसरतां येईल कां ?
कल्पना व संवादः राहुल उज्जैनकर ''फराज''
Thursday, March 01, 2012
दिवस असे का प्रेमाचे हे ..................
दिवस असे का प्रेमाचे ह, सहजा सहजी फिरून जातात
हवे हवे से दिवस हे, हवेत का विरून जातात
हवे हवे से दिवस हे, हवेत का विरून जातात
शोधल्यावर ही मिळत नाही, उरतात फक्त आठवणीं
आठवणीं मागचे स्वप्न ते, वेडे का करून जातात
हवे हवे से दिवस हे, हवेत का विरून जातात
कित्येक वर्षे मागे गेली, तरी तें आठवावंस वाटतं
ते, दिवस आठवता मात्र - डोळे का भरून जातात
हवे हवे से दिवस हे, हवेत का विरून जातात
आज आपण एक आहोत, काल भेटूं ही देत नव्हते
प्रेमाशी कुणाचे वैर आहे ? , लोकं असे कां करून जातात
हवे हवे से दिवस हे, हवेत का विरून जातात
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
I Strongly Believe, that this is my one of the Best Poetry Ever...
नशीबाशी आज पुन्हा.........
नशीबाशी आज पुन्हा, लढण्याची इच्छा झाली
नशीबाशी आज पुन्हा, लढण्याची इच्छा झाली
अर्ध्या रात्री मला तुझयाशी भेटण्याची इच्छा झाली
नशीबाशी आज पुन्हा,
भेंट जर झाली नाही तर सर्व काही पेटवून देईन
भर पावसाळयात मला आग लावण्याची इच्छा झाली
नशीबाशी आज पुन्हा,
दिवा म्हणतो काही झालं तरी आज विझणार नाही
दिव्यालाही वारयाशी आज लढण्याची इच्छा झाली
नशीबाशी आज पुन्हा,
वाट पाहत बसला, की ह्रदयातला कवि जागा होतो
तुझयासाठी शब्दांना आज गुंफण्याची इच्छा झाली
नशीबाशी आज पुन्हा,
अश्रु-डोळयात माझया आणि ओठांवर विरहाचे गीत
वेडा होवून दारो-दारी तुला शोधण्याची इच्छा झाली
नशीबाशी आज पुन्हा,
राहुल उज्जैनकर ''फराज''
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लाल सुर्ख है उसके पांव की मेहंदी,जरा देख तो लूं क्या किया है कमाल मेरे खूने जिगर ने,जरा देख तो लूं मद्दतों मेरे पहलू में रहा ...