जैसे कोई सपनां देख रही हूं शायद...तुम्हारा
कितनी सहज मुस्कान...
अचानक से रोना
अपनें में ही हंसना
मैं सामनें हूं...... फिर भी
जाने किस से...... बांते करती रहती हो
जब, मन करता है, तुम्हारे साथ खेलनें का
तो, सोती रहती हो....
मैं भी नां....
जानें क्या क्या सोचनें लगी हूं
दिन ही कितनें हुए है तुमको आए......
मगर.....
एक अंजाना यथार्थ, मुझे सतानें लगता है
जब भी खना बनाती हूं नां...
तो, ज्यादा डर जाती हूं
हल्दी जब हाथों में, लेती हूं.....
एक पल को भी आंसू नहीं थमते
मगर.....
अब सोच लिया है
इतना दूर तक नहीं सोचूंगी
तुम्हारी तरह, निश्चल बनके
तुम्हारे साथ रहूंगी
अभी तो....
कितनी सारी लोरीयां गानी है
कितनें किससे, कहानियां सुनानीं है
जानती हूं..... मैं
सब हैं दिवानें मेरी गुडिया के
और...... गुडिया बस्
मेरी दिवानी है
................ गुडिया बस्
मेरी दिवानी है
कल्पना एवं संवाद -
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
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