Wednesday, December 11, 2013

तेरी ऑंखो का इंतिजार मैनें देखा है

तेरी ऑंखो का इंतिजार मैनें देखा है
हंसी में गम को छुपाना मैंनें देखा है

घंटो खडी रहती हो ऐतबारे वफा पे मेरी
सिनें में उभरती टीस का दर्द मैनें देखा है

बडा सुकून है तेरी आंखों में, है झील सी गहराई
जहन में है मगर जलजला बहोत, मैंने देखा है

समेट लेना मुझे बाहों में, ओस सा पिघल जाना
हर जख्‍़म पर, मुठ्ठीयों का भिंचना, मैनें देखा है

फ़राज़ उसके लबों को देख, है वो गुलाब कि मानिंद
सूरज के ढलते ही इनका मुर्झा जाना , मैनें देखा है
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़

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