सोचता हूं छोड दूं तेरा दर तेरी गली
तेरी मूरत जो, संगमरमरी सांचे में ढली
तेरे हुस्न के नज़ारे अभी परवान चढनें को है
मगर अभी रात ढलनें को है...........
कुछ वक्त के तकाजे है, कुछ इरादे दिल के
बहोत है बाकी सुनाने को, फसानें दिल के
दिल के मरहले कहॉं,खत्म होने को है
मगर अभी रात ढलनें को है.............
मगर अभी रात ढलनें को है.............
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
तेरी मूरत जो, संगमरमरी सांचे में ढली
तेरे हुस्न के नज़ारे अभी परवान चढनें को है
मगर अभी रात ढलनें को है...........
कुछ वक्त के तकाजे है, कुछ इरादे दिल के
बहोत है बाकी सुनाने को, फसानें दिल के
दिल के मरहले कहॉं,खत्म होने को है
मगर अभी रात ढलनें को है.............
मगर अभी रात ढलनें को है.............
राहुल उज्जैनकर फ़राज़
वक्त की कमी है वरना दिल में जज्बात तो बहुत है...
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति...
:-)
जी रीना जी ....... कुछ ऐसी ही मजबूरीयां है
ReplyDeleteसादर
राहुल