Thursday, July 26, 2012

चाहा था मैंने भी तेरे साथ फनां हो जाना, मगर....

रफ्ता रफ्ता जिंदगी ने भी रफ्तार बढा दी है
सफेदी मेरे बालों की तर्जुबों ने बढा दी है

पन्‍ने दर पन्‍ने मैं वक्‍त के पलटता गया
झुर्रियां ये मेरे बदन की इंतिजार नें बढा दी है

खामोश रहता हूं कभी, कभी खुद से बांते करता हूं
दिवानगी मेरी फिरसे, तेरी कमीं ने बढा दी है

चाहा था मैंने भी तेरे साथ फनां हो जाना, मगर....
जिंदगी ''फ़राज़''की, तुझसे किये वादे ने बढा दी है
राहुल उज्‍जैनकर 'फ़राज़'

6 comments:

  1. रफ्ता रफ्ता जिंदगी ने भी रफ्तार बढा दी है
    सफेदी मेरे बालों की तर्जुबों ने बढा दी है
    बहुत खूब... लाजवाब...

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  2. Replies
    1. धन्‍यवाद हबीब जी ......... सादर

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  3. यशवन्‍त जी सादर अभिनंदन ...... धन्‍यवाद
    जिस प्रकार आप मेरा मान बढाते आये है उस जज्‍बे को सलाम है मेरा
    सादर

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