Thursday, July 01, 2010

काश मैं पंछी होता

काश मैं पंछी होता !!

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काश मैं पंछी होता
उडता खुले आकाश में
हवाओं से मैं बातें करता
उनसे उनकी कहानी सुनता
कुछ अपनी भी कहानी सुनाता
दूर देश की सैर को जाता, साथ अपनें
कुछ अनुभव लाता.....
किसी साथी से प्यार हो जाता..
उसके साथ दुनिया बसाता
फिर मेरे कुछ बच्चे होते, जब उनके...
पर नां निकले होते, तब उनका मैं....
हौसला बढाता, उंचे आकाश के किस्से सुनाता
इधर उधर की बातें करके.....
उनका अपना दिल बहलाता, कहते.......
पापा जल्दी आना..
साथ में ढेर सी बातें लानां, तब मैं उनसे कहता.....
बच्चों.....

अपनीं मां का कहना सुननां
शाम को जब मैं...
घर को आता, बच्चों को मैं जागा पाता....
कहते पापा.... कहानी सुनाओ !
इन्सानो का हाल बताओ ?
तब मैं....
उनसे कहता बच्चों......
इन्सानो का हाल ना पूछो !
कितना है बेहाल ना पूछो !
इक दुजे के खून का प्यासा.....
छोड चुका है सारी आशा...
नही रहा उसके पास कोई पर्दा..
छोड चुका वो सारी मर्यादा....
फिर मैं कहता सुनो बच्चों.........
इन्सानो की दुनिया नही है अच्छी.....
अपनी दुनिया ही है...
सीधी सच्ची....
अपनी दुनिया ही है, सीधी सच्ची....

(राहुल उज्जैनकर "फ़राज़")

8 comments:

  1. Very Very nice.

    sab kuch ek panchi ki zaban me samjha diya insano ke bare me , tarife kabil likha hai.

    Vaibhav

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  2. Excellent !

    Nice poem bro !

    Apki ki ek aur khobi ko hamne jana hai aj

    Bhai ke roop main pratyaksh KAVIRAAZ !!

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  3. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  4. अच्छी रचना....
    मो जगजीत सिंह जी को सुन कर आनंद आ गया...
    सादर

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  5. Replies
    1. सादर अभिनंदन है अना जी आपका

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  6. यह काश ही तो कभी कभी मन को बेचैन कर देता है ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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