Monday, July 25, 2016

कोई गम मुझको भी तो तू अता करती जा

 
कोई गम मुझको भी तो तू अता करती जा
इश्क़ गुनाह है, तो मुझे मुज़रिम करती जा
 
बांध दे बेड़ियाँ मेरे पाँओं में, इन्तिज़ार की
बड़ा सुकून है जिंदगी में,कोहराम करती जा
 
दिल-ए-बस्ती में, न शोर कोई, न कोई रंज है
मस्तमौला है जिंदगी, तू नींद हराम करती जा
 
उकता गया हूं मैं,एक मुसलसल राह पे चलते
खुशहाल है रास्ते, तू बद से बदतर करती जा
 
यूं हर बात पर क्या, गुजरी रातों का हिसाब मांगना
इश्क में हिसाब क्या देखना, तू बेहिसाब करती जा
 
वक़्त बदले न बदले, कुछ पल को समां बदलेगा
फ़राज़ खुद कमाल है, तू इसे बेमिसाल करती जा
©®राहुल फ़राज़


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