Thursday, July 25, 2013

देखो ना अब तुम्हे वो सब याद भी नहीं आता

देखो ना अब तुम्हे वो सब याद भी नहीं आता
भेजता हूं खत रोज, मगर जवाब ही नही आता
तुमनें तो उडा दी है मेरी निंदे, चैनों-करार मेरा
पर क्या तुम्हे मेरा कभी सपनां भी नहीं आता

आसमां घना है मगर,बरसनें वाला मेरा बादल नहीं आता

तेरे आनें की कभी कोई, झुठी ख़बर भी तो नही लाता
वजह ये तो नहीं के मैनें रोका है सैलाब अपनीं ऑखों में
इसलिये, तेरी पलको के किनारे पर कतरा भी नहीं आता

गुज़रा हुआ पल सुहाना कभी लौट के नहीं आता, पर
मेरे पहलू से तेरा निकल जाना भी, समझ में नहीं आता
किस्मपत से गुज़रती हैं राते महबूब के पहलू में..‘फ़राज़’
तुझे मुझसे मोहब्बहत है या अदावत ये भी समझ नहीं आता
राहुल उज्जैनकर फ़राज़

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