रफ्ता रफ्ता जिंदगी ने भी रफ्तार बढा दी है
सफेदी मेरे बालों की तर्जुबों ने बढा दी है
पन्ने दर पन्ने मैं वक्त के पलटता गया
झुर्रियां ये मेरे बदन की इंतिजार नें बढा दी है
खामोश रहता हूं कभी, कभी खुद से बांते करता हूं
दिवानगी मेरी फिरसे, तेरी कमीं ने बढा दी है
चाहा था मैंने भी तेरे साथ फनां हो जाना, मगर....
जिंदगी ''फ़राज़''की, तुझसे किये वादे ने बढा दी है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'
सफेदी मेरे बालों की तर्जुबों ने बढा दी है
पन्ने दर पन्ने मैं वक्त के पलटता गया
झुर्रियां ये मेरे बदन की इंतिजार नें बढा दी है
खामोश रहता हूं कभी, कभी खुद से बांते करता हूं
दिवानगी मेरी फिरसे, तेरी कमीं ने बढा दी है
चाहा था मैंने भी तेरे साथ फनां हो जाना, मगर....
जिंदगी ''फ़राज़''की, तुझसे किये वादे ने बढा दी है
राहुल उज्जैनकर 'फ़राज़'