Thursday, July 21, 2022

ज़िंदगी मे बस्स

ज़िंदगी मे हम बस, समझौते ही करते आये
जिसने जैसा चाहा, हम बस वैसे ही जीते आये 

रिश्ते बचाने की अहमियत उन्हें नही, हमको ही थी 
एक इसी कशमकश में हम,अपनी जुबाँ सिते आये

किसी रोज उसे भी होगा एहसास, हमारी कुर्बत का
अपनी गैरत की खातिर, खुलूस-ए-ज़हर पीते आये 
(कुर्बत=निकटता  |  गैरत =आत्मसम्मान | खुलूस-ए-जहर=वफादारी का ज़हर)

तगाफुल वो हमें करता रहा, अपनी हर अंजुमन में 
अपने इख्लास पर दे दूं जान, वो पल जीते आये 
तगाफुल=उपेक्षित । अंजुमन=सभा | इख्लास=निष्कपट-प्रेम 

इससे बढ़कर उम्मीद-ए-दिल कोई क्या होगा 
मुर्दा-दिलों में फ़राज़, ज़िंदा दिल खोजते आये
©®राहुल फ़राज़ 
उम्मीद-ए-दिल=उम्मीद भरा दिल | मुर्दा-दिल=जिसका दिल मर गया हो. 8

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