Sunday, February 17, 2013

मगर अभी रात ढलनें को है....

सोचता हूं छोड दूं तेरा दर तेरी गली
तेरी मूरत जो, संगमरमरी सांचे में ढली
तेरे हुस्‍न के नज़ारे अभी परवान चढनें को है
        मगर अभी रात ढलनें को है...........

कुछ वक्‍त के तकाजे है, कुछ इरादे दिल के
बहोत है बाकी सुनाने को, फसानें दिल के
दिल के मरहले कहॉं,खत्‍म होने को है
         मगर अभी रात ढलनें को है.............
                            मगर अभी रात ढलनें को है.............
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़ 


Friday, February 15, 2013

बहोत कुछ, अभी समेटना बाकी है


चल पडो,  की अभी..... 

बहोत कुछ, समेटना बाकी है
अपनें हिस्‍से की पूरी धूप
अभी काटना बाकी है
इश्‍क का चांद अभी
रखूं भी तो, कहां रखूं ?
छत से अपनें हिस्‍से की
अभी, अमावस....
समेटना बाकी है
तुम कहती हो......
सहारे इश्‍क के
जिंदगी गुज़ार दूंगी
रस्‍मों रिवाज़ो के सारे
बंधन उतार दूंगी
तुम्‍हे भी तो अभी.....
देना, इंम्तिहान बाकी है
चल पडो़..... की
अभी बहोत कुछ
समेटना बाकी है
अपनें हिस्‍से की
पूरी धूप अभी.....
काटना बाकी है......
चल पडो़............. बहोत कुछ अभी समेटना बाकी है
 बहोत कुछ अभी समेटना बाकी है
राहुल उज्‍जैनकर फ़राज़ 

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ?

प्यार वफ़ा इश्क की बातें, तुम करोगे ? इमानो दिल,नज़ीर की बातें तुम करोगे ? तुम, जिसे समझती नही, दिल की जुबां मेरी आँखों मे आँखें डाल,बातें तुम...